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मूर्ख साधु और चालाक ठग की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में गुरुदेव नाम का एक साधु हाथी रहता था। वह बहुत ही सीधा-सादा और भोला था। जंगल के सभी जानवर उसका बहुत सम्मान करते थे क्योंकि वह हमेशा दूसरों की मदद करता था।

एक दिन गुरुदेव साधु को राजा हाथी ने बुलाया और कहा, “गुरुदेव, आपकी सेवा से प्रसन्न होकर मैं आपको यह सोने का कलश भेंट कर रहा हूँ। इसे संभालकर रखिएगा।”

गुरुदेव बहुत खुश हुआ और सोने के कलश को लेकर अपनी कुटिया में चला गया। उसने कलश को एक कपड़े में लपेटकर रख दिया।

उसी जंगल में चतुर नाम की एक लोमड़ी रहती थी। वह बहुत ही चालाक ठग थी और हमेशा दूसरों को बेवकूफ बनाकर उनका सामान चुराने की फिराक में रहती थी। जब उसने सुना कि गुरुदेव के पास सोने का कलश है, तो उसके मन में लालच आ गया।

चतुर ने सोचा, “यह मूर्ख साधु बहुत भोला है। मैं इसे आसानी से बेवकूफ बनाकर सोने का कलश हथिया सकती हूँ।”

अगले दिन चतुर ने अपने आप को एक संत का रूप दिया। उसने अपने गले में तुलसी की माला पहनी और माथे पर तिलक लगाया। फिर वह गुरुदेव की कुटिया के पास पहुँची।

“प्रणाम गुरुदेव!” चतुर ने कहा। “मैं दूर देश से आई हूँ और आपके बारे में सुना है। क्या आप मुझे कुछ दिन यहाँ रहने की अनुमति देंगे?”

भोले गुरुदेव ने खुशी से कहा, “अवश्य बहन जी! आप यहाँ जितने दिन चाहें रह सकती हैं।”

चतुर ठग कई दिनों तक गुरुदेव के साथ रही। वह रोज सुबह-शाम पूजा-पाठ करती और गुरुदेव की सेवा करती। मूर्ख साधु गुरुदेव को लगा कि यह सच में एक अच्छी संत है।

एक दिन चतुर ने कहा, “गुरुदेव, मैंने सुना है कि आपके पास एक दिव्य कलश है। क्या मैं उसके दर्शन कर सकती हूँ?”

गुरुदेव ने बिना सोचे-समझे सोने का कलश निकालकर दिखाया। चतुर की आँखें चमक उठीं।

“वाह! कितना सुंदर है!” चतुर ने कहा। “गुरुदेव, मैं इस पर विशेष पूजा करना चाहती हूँ। क्या आप इसे मुझे एक रात के लिए दे सकते हैं?”

भोला गुरुदेव मान गया। उसी रात चतुर ठग सोने का कलश लेकर भाग गई।

सुबह जब गुरुदेव ने देखा कि चतुर और कलश दोनों गायब हैं, तो वह बहुत दुखी हुआ। वह समझ गया कि वह एक चालाक ठग के जाल में फँस गया था।

पास ही बैठे बुद्धिमान कौवे ने कहा, “गुरुदेव, आपने बिना सोचे-समझे अपना कीमती कलश एक अजनबी को दे दिया। अगली बार किसी पर भी आँख मूंदकर भरोसा मत करिएगा।”

गुरुदेव को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सीखा कि अच्छाई करना अलग बात है, लेकिन अंधा विश्वास करना मूर्खता है।

नैतिक शिक्षा: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि हमें दयालु और मददगार होना चाहिए, लेकिन साथ ही सावधान भी रहना चाहिए। किसी भी अजनबी पर आँख मूंदकर भरोसा नहीं करना चाहिए। मूर्ख साधु और ठग की यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्चाई और चालाकी में अंतर करना जरूरी है।

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