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कंस का अत्याचार और भविष्यवाणी – श्रीकृष्ण की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन का शासन था। उनका पुत्र कंस बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था। एक दिन कंस ने अपने ही पिता को कारागार में डाल दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन गया।
कंस का अत्याचार दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। वह प्रजा पर अनेक प्रकार के कष्ट डालता था। लोग उसके डर से अपने घरों में छुप कर रहते थे। मंदिरों में भजन-कीर्तन बंद हो गए थे। सभी देवता भी कंस के अत्याचार से परेशान थे।
कंस की एक बहन थी देवकी, जो बहुत ही सुंदर और धर्मपरायण थी। जब देवकी का विवाह वसुदेव से हुआ, तो कंस बहुत खुश था। वह स्वयं रथ हांक कर अपनी बहन को ससुराल छोड़ने जा रहा था।
अचानक आकाश से एक दिव्य आवाज गूंजी – “हे कंस! जिस देवकी को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है, उसी का आठवां पुत्र तेरा वध करेगा।”
यह भविष्यवाणी सुनकर कंस का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। उसने तुरंत तलवार निकाली और देवकी को मारने के लिए दौड़ा। वसुदेव ने हाथ जोड़कर कहा, “हे राजन! देवकी को मत मारिए। मैं वचन देता हूं कि जो भी संतान होगी, उसे आपके सामने प्रस्तुत कर दूंगा।”
कंस ने वसुदेव और देवकी दोनों को कारागार में डाल दिया। उसने सोचा कि इस तरह वह भविष्यवाणी को झुठला देगा। कंस के सैनिक दिन-रात कारागार की पहरेदारी करते थे।
समय बीतता गया और देवकी के एक-एक करके सात पुत्र हुए। कंस का अत्याचार इतना बढ़ गया था कि वह प्रत्येक नवजात शिशु को तुरंत मार देता था। सातवें पुत्र बलराम को योगमाया ने गुप्त रूप से रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया था।
जब आठवां पुत्र होने का समय आया, तो सभी देवता चिंतित हो गए। भगवान विष्णु ने सभी को आश्वासन दिया कि वे स्वयं श्रीकृष्ण के रूप में अवतार लेंगे और धर्म की रक्षा करेंगे।
श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात्रि में, जब चारों ओर घनघोर बारिश हो रही थी, देवकी के गर्भ से भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। जन्म के समय वे चतुर्भुज रूप में प्रकट हुए, जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे।
श्रीकृष्ण ने देवकी से कहा, “हे माता! मैं ही वह हूं जो कंस का वध करूंगा। अब पिता वसुदेव मुझे गोकुल में नंद बाबा के घर पहुंचा देंगे।” यह कहकर वे सामान्य शिशु का रूप धारण कर लिया।
योगमाया के प्रभाव से सभी पहरेदार गहरी नींद में सो गए और कारागार के सभी दरवाजे अपने आप खुल गए। वसुदेव ने श्रीकृष्ण को एक टोकरी में रखा और यमुना पार करके गोकुल पहुंचे। वहां नंद की पत्नी यशोदा के यहां एक कन्या का जन्म हुआ था।
वसुदेव ने श्रीकृष्ण को यशोदा के पास छोड़ा और उस कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए। प्रातःकाल जब कंस को पता चला कि आठवां बच्चा पैदा हुआ है, तो वह तुरंत कारागार पहुंचा।
जैसे ही कंस ने उस कन्या को पकड़कर पत्थर पर पटकने की कोशिश की, वह कन्या उसके हाथों से छूटकर आकाश में चली गई और देवी के रूप में प्रकट होकर बोली, “हे मूर्ख कंस! तेरा काल तो पहले ही जन्म ले चुका है और सुरक्षित स्थान पर पहुंच गया है।”
यह सुनकर कंस और भी क्रोधित हो गया। उसने अपने सभी सैनिकों को आदेश दिया कि वे मथुरा और आसपास के सभी नवजात शिशुओं को मार डालें। कंस का अत्याचार चरम सीमा पर पहुंच गया था।
इधर गोकुल में श्रीकृष्ण नंद बाबा और यशोदा मैया के लाड़ले बनकर बड़े हो रहे थे। उन्होंने बचपन से ही अनेक असुरों का वध किया – पूतना, तृणावर्त, बकासुर, अघासुर आदि। हर बार जब कोई असुर आता, तो श्रीकृष्ण उसका वध कर देते।
समय आने पर श्रीकृष्ण ने मथुरा जाकर अपने मामा कंस का वध किया और भविष्यवाणी को सत्य सिद्ध कर दिया। उन्होंने अपने दादाजी उग्रसेन को फिर से मथुरा का राजा बनाया और धर्म की स्थापना की।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अत्याचार कितना भी बड़ा हो, सत्य और धर्म की हमेशा विजय होती है। भगवान हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और बुराई का नाश करते हैं। हमें हमेशा धर्म के मार्ग पर चलना चाहिए और अन्याय का विरोध करना चाहिए। धर्म और न्याय की इस कहानी से प्रेरणा लें।











