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मेंढक और सांप की मित्रता – पंचतंत्र की कहानी
एक समय की बात है, एक घने जंगल में एक सुंदर तालाब था। उस तालाब में गंगाराम नाम का एक बुद्धिमान मेंढक रहता था। गंगाराम बहुत ही चतुर और समझदार था, लेकिन उसकी एक बुरी आदत थी – वह हमेशा दूसरों से ईर्ष्या करता था।
तालाब के किनारे नागराज नाम का एक काला सांप रहता था। नागराज बहुत ही शांत स्वभाव का था और किसी को नुकसान नहीं पहुंचाता था। वह केवल छोटे कीड़े-मकोड़े खाकर अपना गुजारा करता था।
एक दिन गंगाराम ने देखा कि जंगल के सभी जानवर नागराज से डरते हैं और उसका सम्मान करते हैं। “काश मुझे भी इतना सम्मान मिलता!” गंगाराम ने सोचा। उसके मन में एक चालाकी भरा विचार आया।
अगले दिन गंगाराम नागराज के पास गया और बोला, “नागराज भाई, आप बहुत ही महान हैं। क्या आप मेरे मित्र बनेंगे?”
नागराज को यह बात अजीब लगी क्योंकि मेंढक और सांप कभी मित्र नहीं होते। फिर भी उसने विनम्रता से कहा, “गंगाराम, हम दोनों की प्रकृति अलग है। यह मित्रता ठीक नहीं होगी।”
लेकिन गंगाराम ने जिद की और कहा, “नहीं भाई, मैं सच्चे दिल से आपका मित्र बनना चाहता हूं। आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं।”
नागराज का दिल बहुत साफ था। उसने गंगाराम की बात मान ली और उससे मित्रता कर ली। दोनों एक साथ समय बिताने लगे।
कुछ दिनों बाद, गंगाराम ने नागराज से कहा, “मित्र, मैं चाहता हूं कि आप मुझे अपनी पीठ पर बिठाकर पूरे जंगल में घुमाएं। इससे सभी जानवर मेरा सम्मान करेंगे।”
नागराज को यह बात पसंद नहीं आई, लेकिन मित्रता के नाते उसने हां कह दी। अगले दिन से गंगाराम नागराज की पीठ पर बैठकर पूरे जंगल में घूमने लगा।
सभी जानवर यह देखकर हैरान रह गए। मेंढक और सांप की यह अजीब मित्रता देखकर वे सोचने लगे कि गंगाराम में कोई जादुई शक्ति है जो उसने सांप को वश में कर लिया है।
गंगाराम को लगा कि उसकी योजना सफल हो रही है। अब सभी जानवर उससे डरने लगे थे और उसका सम्मान करते थे। लेकिन वह और भी लालची हो गया।
एक दिन गंगाराम ने नागराज से कहा, “मित्र, अब मैं चाहता हूं कि आप मेरे लिए भोजन का इंतजाम करें। आप बड़े जानवरों को डराकर उनका खाना मुझे दिलवा सकते हैं।”
यह सुनकर नागराज को बहुत दुख हुआ। उसने कहा, “गंगाराम, यह गलत बात है। मैं किसी को परेशान नहीं कर सकता।”
लेकिन गंगाराम ने जिद की और धमकी दी, “अगर आप मेरी बात नहीं मानेंगे तो मैं सभी को बता दूंगा कि आप कमजोर हैं और मुझसे डरते हैं।”
नागराज समझ गया कि गंगाराम उसकी अच्छाई का फायदा उठा रहा है। उसने मन ही मन निश्चय किया कि अब वह इस झूठी मित्रता को समाप्त कर देगा।
अगले दिन जब गंगाराम नागराज की पीठ पर बैठा, तो नागराज ने उसे एक गहरे गड्ढे के पास ले जाकर अपनी पीठ से गिरा दिया। गंगाराम गड्ढे में गिर गया और चिल्लाने लगा।
नागराज ने कहा, “गंगाराम, सच्ची मित्रता में स्वार्थ नहीं होता। तुमने मेरी भलाई का गलत फायदा उठाया। अब तुम्हें अपनी गलती का एहसास हो गया होगा।”
गंगाराम को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने नागराज से माफी मांगी और वादा किया कि वह फिर कभी किसी की अच्छाई का गलत फायदा नहीं उठाएगा।
नागराज ने उसे गड्ढे से निकाल दिया। दोनों ने एक-दूसरे से विदा ली और अपने-अपने रास्ते चले गए।
कहानी की सीख: सच्ची मित्रता में स्वार्थ नहीं होता। जो व्यक्ति दूसरों की भलाई का गलत फायदा उठाता है, वह अंत में अकेला रह जाता है। हमें हमेशा ईमानदारी और सच्चाई के साथ रिश्ते बनाने चाहिए। सच्ची मित्रता का महत्व समझने के लिए व्यापारी की कहानी पढ़ें।











