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माता पार्वती की तपस्या – गणेश जी के जन्म की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, जब कैलाश पर्वत पर भगवान शिव और माता पार्वती का निवास था। माता पार्वती के मन में एक गहरी इच्छा थी – वे एक पुत्र चाहती थीं जो उनका अपना हो, जो उनकी रक्षा करे और सदैव उनके साथ रहे।

एक दिन माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा, “हे नाथ! मेरे मन में एक पुत्र पाने की प्रबल इच्छा है। क्या आप मुझे यह वरदान दे सकते हैं?”

भगवान शिव मुस्कराए और बोले, “हे पार्वती! यदि तुम्हारी यह इच्छा इतनी प्रबल है, तो तुम्हें तपस्या करनी होगी। सच्चे मन से की गई तपस्या अवश्य फल देती है।”

माता पार्वती की तपस्या का समय आ गया था। उन्होंने कैलाश के एक शांत स्थान पर बैठकर कठोर तपस्या आरंभ की। वे दिन-रात ध्यान में लीन रहतीं, केवल फल-फूल का सेवन करतीं और मन ही मन अपने होने वाले पुत्र के बारे में सोचतीं।

महीनों तक माता पार्वती की तपस्या चलती रही। उनकी भक्ति और दृढ़ संकल्प देखकर सभी देवता प्रभावित हुए। आकाश में देवताओं के बीच चर्चा होने लगी कि माता पार्वती की यह तपस्या अवश्य सफल होगी।

एक दिन जब माता पार्वती स्नान के लिए तैयार हो रही थीं, तो उन्होंने अपने शरीर से उबटन को साफ किया। उस उबटन से उन्होंने एक सुंदर बालक की आकृति बनाई। वह आकृति इतनी सुंदर थी कि माता पार्वती का हृदय प्रेम से भर गया।

माता पार्वती ने उस मिट्टी के बालक को अपने हृदय से लगाया और बोलीं, “हे मेरे प्यारे बेटे! मैंने तुम्हें अपने हाथों से बनाया है। तुम मेरे गणेश हो।”

माता पार्वती के प्रेम और उनकी तपस्या की शक्ति से वह मिट्टी का बालक जीवित हो उठा। उसमें दिव्य तेज था और वह अत्यंत बुद्धिमान था। बालक ने माता पार्वती के चरण छूए और कहा, “माता! आपकी कृपा से मुझे जीवन मिला है। मैं सदैव आपकी सेवा में रहूंगा।”

माता पार्वती की खुशी का ठिकाना न था। उनकी तपस्या सफल हुई थी और उन्हें अपना प्यारा पुत्र मिल गया था। उन्होंने गणेश को सुंदर वस्त्र पहनाए और उनका मुकुट बांधा।

जब भगवान शिव वापस आए तो उन्होंने देखा कि एक अनजान बालक द्वार पर खड़ा है। गणेश जी ने, जो अपनी माता की आज्ञा का पालन कर रहे थे, भगवान शिव को अंदर जाने से रोका। इससे एक घटना घटी जिसके कारण गणेश जी का सिर कट गया।

जब माता पार्वती को यह पता चला तो वे अत्यंत दुखी हुईं। उन्होंने भगवान शिव से कहा, “यह मेरा पुत्र है जिसे मैंने अपनी तपस्या से पाया है। आपको इसे जीवित करना होगा।”

भगवान शिव ने माता पार्वती की व्यथा देखी और तुरंत अपने गणों को उत्तर दिशा में जाकर पहले जीव का सिर लाने को कहा। गण हाथी का सिर लेकर आए। भगवान शिव ने उस हाथी के सिर को गणेश के धड़ पर लगाया और उन्हें जीवनदान दिया।

इस प्रकार गणेश जी हाथी के सिर के साथ जीवित हुए। भगवान शिव ने उन्हें अपना पुत्र स्वीकार किया और कहा, “आज से तुम मेरे गणों के नायक होगे। तुम्हारी पूजा सभी देवताओं से पहले होगी।”

माता पार्वती की आंखों में खुशी के आंसू थे। उनकी तपस्या और गणेश जी के जन्म की इच्छा पूर्ण हुई थी। गणेश जी ने माता-पिता दोनों को प्रणाम किया और कहा, “मैं सदैव आपकी सेवा में रहूंगा और भक्तों की मनोकामना पूर्ण करूंगा।”

तब से गणेश जी विघ्न हर्ता और मंगलकारी के रूप में पूजे जाते हैं। माता पार्वती की तपस्या का यह फल था कि संसार को एक ऐसे देवता मिले जो हर कार्य में सफलता दिलाते हैं।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची भक्ति और दृढ़ संकल्प से की गई तपस्या अवश्य फल देती है। माता पार्वती के समान यदि हम भी पूर्ण श्रद्धा और धैर्य के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें तो सफलता अवश्य मिलती है।

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