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लालची कुत्ता और उसकी सजा
एक छोटे से गाँव में राजू नाम का एक कुत्ता रहता था। राजू बहुत ही लालची कुत्ता था और हमेशा दूसरों का खाना छीनने की कोशिश करता रहता था। गाँव के सभी जानवर उससे परेशान थे।
एक दिन राजू को एक मांस का बड़ा टुकड़ा मिला। वह बहुत खुश हुआ और सोचने लगा, “आज तो मैं पेट भरकर खाऊंगा!” लेकिन उसके मन में एक और विचार आया – “क्या पता कहीं और भी मांस मिल जाए?”
मांस को मुंह में दबाकर राजू इधर-उधर घूमने लगा। रास्ते में उसे एक छोटी नदी दिखाई दी। जब वह नदी के पुल से गुजर रहा था, तो उसने पानी में अपनी परछाई देखी।
“अरे वाह!” राजू चिल्लाया, “यहाँ तो एक और कुत्ता है और उसके पास भी मांस का टुकड़ा है! वह टुकड़ा मेरे टुकड़े से भी बड़ा लग रहा है।”
लालची कुत्ता राजू ने सोचा, “अगर मैं उस कुत्ते से उसका मांस छीन लूं, तो मेरे पास दो टुकड़े हो जाएंगे।” वह भूल गया कि यह केवल उसकी अपनी परछाई थी।
राजू ने दूसरे कुत्ते को डराने के लिए जोर से भौंकना शुरू किया। “भौं भौं! वह मांस मुझे दे दो!” लेकिन जैसे ही उसने मुंह खोला, उसका अपना मांस का टुकड़ा नदी में गिर गया और पानी के तेज बहाव में बह गया।
“हाय! मेरा मांस!” राजू रोने लगा। अब उसके पास कुछ भी नहीं था। वह समझ गया कि पानी में दिखने वाला कुत्ता उसकी अपनी परछाई थी।
भूखा और दुखी राजू वापस गाँव लौटा। रास्ते में उसकी मुलाकात बुद्धिमान बंदर गुरुजी से हुई। गुरुजी ने पूछा, “राजू, तुम इतने उदास क्यों हो?”
राजू ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। गुरुजी ने समझाया, “बेटा, लालच का फल हमेशा दुख होता है। जो हमारे पास है, उसमें संतुष्ट रहना चाहिए।”
उस दिन के बाद से राजू ने अपनी लालची आदत छोड़ दी। वह दूसरे जानवरों के साथ मिल-जुलकर रहने लगा और कभी किसी का खाना नहीं छीना।
शिक्षा: लालच बुरी बला है। जो हमारे पास है उसमें संतुष्ट रहना चाहिए, नहीं तो वह भी खो सकता है। लालची कुत्ता बनने से बचना चाहिए और हमेशा धैर्य रखना चाहिए।
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