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कितनी माताएँ – अकबर बीरबल की कहानी
एक दिन बादशाह अकबर अपने दरबार में बैठे थे। उनके मन में अचानक एक प्रश्न आया। वे अपने सबसे बुद्धिमान मंत्री बीरबल से पूछना चाहते थे कि कितनी माताएँ होती हैं इस संसार में।
“बीरबल!” अकबर ने आवाज लगाई। “आज मेरे मन में एक अजीब सा सवाल आया है।”
बीरबल ने सिर झुकाकर कहा, “जहाँपनाह, आपका सवाल क्या है?”
अकबर ने मुस्कराते हुए पूछा, “बताओ बीरबल, कितनी माताएँ होती हैं? क्या सिर्फ जन्म देने वाली ही माता होती है?”
बीरबल ने थोड़ी देर सोचा और कहा, “हुजूर, यह बहुत गहरा प्रश्न है। क्या आप चाहेंगे कि मैं इसका उत्तर कल दूं?”
अकबर ने हामी भर दी। अगले दिन बीरबल दरबार में आया और बोला, “जहाँपनाह, आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए मैं एक छोटी सी कहानी सुनाना चाहता हूँ।”
“एक गाँव में राम नाम का एक छोटा बालक रहता था। उसकी जन्म देने वाली माता का देहांत हो गया था। उसके पिता ने दूसरा विवाह किया। सौतेली माँ ने राम को अपना पुत्र मानकर पाला।”
“जब राम बीमार पड़ा, तो गाँव की एक वैद्य की पत्नी ने उसकी सेवा की। स्कूल में उसकी अध्यापिका ने उसे शिक्षा दी। गाय ने उसे दूध पिलाया। धरती माता ने उसे अन्न दिया।”
बीरबल ने कहानी पूरी करके कहा, “हुजूर, अब बताइए कितनी माताएँ थीं राम की?”
अकबर सोच में पड़ गए। बीरबल ने आगे कहा, “जहाँपनाह, जन्म देने वाली माता तो एक ही होती है, लेकिन मातृत्व का भाव रखने वाली कितनी माताएँ होती हैं, इसकी कोई गिनती नहीं।”
“पहली माता वह है जो जन्म देती है। दूसरी वह जो पालन-पोषण करती है। तीसरी वह जो शिक्षा देती है। चौथी गौ माता जो दूध देती है। पाँचवीं धरती माता जो अन्न देती है।”
बीरबल ने अपनी बात जारी रखी, “छठी वह नर्स या दाई जो बीमारी में सेवा करती है। सातवीं वह पड़ोसी औरत जो मुसीबत में मदद करती है। आठवीं गंगा माता जो पवित्रता देती है।”
“नवीं सरस्वती माता जो ज्ञान देती है। दसवीं लक्ष्मी माता जो समृद्धि देती है। ग्यारहवीं दुर्गा माता जो शक्ति देती है। बारहवीं काली माता जो बुराई से बचाती है।”
अकबर चकित होकर सुन रहे थे। बीरबल ने कहा, “और भी हैं हुजूर! तेरहवीं वह दादी जो कहानियाँ सुनाती है। चौदहवीं वह चाची जो त्योहारों में खुशी देती है। पंद्रहवीं वह मौसी जो प्यार लुटाती है।”
“सोलहवीं प्रकृति माता जो हवा, पानी, धूप देती है। सत्रहवीं वह गुरु पत्नी जो आध्यात्मिक मार्गदर्शन देती है।”
अकबर ने हैरानी से पूछा, “तो फिर कितनी माताएँ होती हैं कुल मिलाकर?”
बीरबल ने मुस्कराते हुए कहा, “जहाँपनाह, जितनी औरतें इस संसार में मातृत्व का भाव रखती हैं, उतनी ही माताएँ होती हैं। यह संख्या अनगिनत है।”
“हर वह स्त्री जो किसी बच्चे को प्यार करती है, उसकी देखभाल करती है, उसे सिखाती है, वह उस बच्चे की माता है। मातृत्व सिर्फ जन्म देने में नहीं, बल्कि प्रेम और सेवा में है।”
अकबर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, “वाह बीरबल! तुमने मुझे समझा दिया कि कितनी माताएँ होती हैं। यह सिर्फ संख्या का सवाल नहीं, बल्कि भावना का सवाल है।”
बीरबल ने कहा, “बिल्कुल सही कहा हुजूर। इसीलिए हमारे शास्त्रों में कहा गया है – ‘मातृ देवो भव’ यानी माता को देवता मानो। क्योंकि माता का प्रेम ही सबसे पवित्र और निस्वार्थ होता है।”
दरबार के सभी लोग बीरबल की बुद्धिमानी से प्रभावित हुए। अकबर ने बीरबल को इनाम देते हुए कहा, “आज तुमने मुझे जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया है।”
सीख: इस कहानी से हमें पता चलता है कि मातृत्व सिर्फ जन्म देने में नहीं है। हर वह व्यक्ति जो प्रेम, देखभाल और मार्गदर्शन देता है, वह मातृत्व का भाव रखता है। कितनी माताएँ होती हैं, यह गिनती का सवाल नहीं, बल्कि प्रेम की गहराई का सवाल है। हमें सभी माताओं का सम्मान करना चाहिए।
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