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कवि और धनवान आदमी – बीरबल की बुद्धिमानी

बादशाह अकबर के दरबार में एक दिन एक कवि और धनवान आदमी के बीच बहस छिड़ गई। धनवान सेठ रामदास का कहना था कि दुनिया में धन से बड़ी कोई चीज़ नहीं है, जबकि कवि कालिदास का मानना था कि कविता और कला धन से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

सेठ रामदास ने गर्व से कहा, “हुज़ूर, मेरे पास अरबों रुपये हैं। मैं किसी भी कवि को अपना गुलाम बना सकता हूँ। धन के बिना तो कवि भूखा मर जाएगा!”

कवि कालिदास ने जवाब दिया, “महाराज, धन तो आता-जाता रहता है, लेकिन अच्छी कविता सदियों तक लोगों के दिलों में बसी रहती है। कविता और धन के बीच संतुलन होना चाहिए, लेकिन कला को धन का गुलाम नहीं बनना चाहिए।”

बादशाह अकबर इस बहस को सुनकर परेशान हो गए। वे बीरबल की तरफ़ देखकर बोले, “बीरबल, तुम इस मामले का फैसला करो। आखिर कवि और धनवान आदमी में से कौन सही है?”

बीरबल मुस्कराए और बोले, “जहाँपनाह, मैं कल तक इसका जवाब दूंगा। लेकिन इसके लिए मुझे दोनों की मदद चाहिए।”

अगले दिन बीरबल ने सेठ रामदास से कहा, “सेठजी, आप अपने धन से शहर के सबसे अच्छे हलवाई से मिठाई मंगवाइए और सभी दरबारियों को खिलाइए।”

सेठ ने तुरंत सोने के सिक्के निकाले और शहर की सबसे महंगी मिठाई मंगवाई। सभी दरबारी खुश होकर मिठाई खाने लगे।

फिर बीरबल ने कवि कालिदास से कहा, “कविजी, आप इस खुशी के मौके पर एक सुंदर कविता सुनाइए।”

कालिदास ने एक मधुर कविता सुनाई जिसमें मिठास, खुशी और जीवन के सुंदर पलों का वर्णन था। सभी दरबारी मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे।

कविता समाप्त होने पर बीरबल ने पूछा, “दरबारियों, बताइए कि आपको क्या अधिक पसंद आया – मिठाई या कविता?”

एक दरबारी ने कहा, “हुज़ूर, मिठाई तो खाकर खत्म हो गई, लेकिन कविता अभी भी दिल में गूंज रही है।”

दूसरे ने कहा, “लेकिन बिना मिठाई के तो हमारा पेट ही नहीं भरता। दोनों की ज़रूरत है।”

बीरबल ने मुस्कराते हुए कहा, “जहाँपनाह, यही तो सच्चाई है। कविता और धन के बीच संतुलन ज़रूरी है। सेठजी का धन मिठाई लाया, लेकिन कविजी की कला ने उस खुशी को यादगार बना दिया।”

बीरबल ने आगे समझाया, “धन जीवन की ज़रूरतों को पूरा करता है, लेकिन कला और कविता जीवन को सुंदर और अर्थपूर्ण बनाती है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं।”

सेठ रामदास और कवि कालिदास दोनों को अपनी गलती का एहसास हुआ। सेठ ने कहा, “बीरबल साहब, आपने सही कहा। मैं अपने धन का उपयोग कलाकारों की मदद के लिए करूंगा।”

कवि कालिदास ने भी स्वीकार किया, “मैं भी समझ गया कि कलाकार को जीवन यापन के लिए धन की आवश्यकता होती है। मैं अपनी कला से पैसा कमाने में कोई शर्म नहीं करूंगा।”

बादशाह अकबर ने प्रसन्न होकर कहा, “वाह बीरबल! तुमने कवि और धनवान आदमी के बीच सिर्फ़ झगड़ा नहीं सुलझाया, बल्कि दोनों को जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ भी सिखाया।”

उस दिन के बाद सेठ रामदास और कवि कालिदास अच्छे मित्र बन गए। सेठ अपने धन से कवि सम्मेलन आयोजित करवाता और कालिदास अपनी कविताओं से लोगों का मनोरंजन करता।

सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में कविता और धन के बीच संतुलन होना आवश्यक है। धन जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करता है, जबकि कला और साहित्य जीवन को सुंदर और अर्थपूर्ण बनाते हैं। दोनों का अपना महत्व है और दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। हमें न तो केवल धन के पीछे भागना चाहिए और न ही कला को धन से दूर रखना चाहिए।

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