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कौआ, चूहा, कछुआ और हिरण की अटूट मित्रता
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में चार मित्र रहते थे – कौआ कालू, चूहा चिंटू, कछुआ धीरू और हिरण तेजू। ये चारों अलग-अलग प्रकृति के होने पर भी एक-दूसरे के सच्चे मित्र थे।
कौआ कालू आसमान में उड़कर दूर-दूर की खबरें लाता था। चूहा चिंटू छोटे-छोटे छेदों में घुसकर गुप्त बातें सुनता था। कछुआ धीरू धीमी गति से चलता था लेकिन उसकी बुद्धि तेज़ थी। हिरण तेजू तेज़ दौड़ता था और सबको खतरे से बचाता था।
एक दिन हिरण तेजू पानी पीने नहीं आया। तीनों मित्र चिंतित हो गए। कौआ कालू ने कहा, “मैं आसमान से देखकर तेजू को ढूंढता हूं।”
कालू ने उड़कर देखा तो हिरण तेजू एक शिकारी के जाल में फंसा हुआ था। वह तुरंत वापस आकर बोला, “तेजू मुसीबत में है! वह शिकारी के जाल में फंस गया है।”
चूहा चिंटू तुरंत बोला, “चलो, मैं अपने तेज़ दांतों से जाल काट दूंगा।” कछुआ धीरू ने कहा, “मैं भी चलूंगा, हो सकता है मेरी सलाह काम आए।”
तीनों मित्र तेजी से उस स्थान पर पहुंचे जहां हिरण फंसा था। चूहा चिंटू ने अपने नुकीले दांतों से जाल काटना शुरू किया। कौआ कालू पहरा देता रहा कि कहीं शिकारी न आ जाए।
अचानक कौआ कालू ने चिल्लाकर कहा, “शिकारी आ रहा है! जल्दी करो!” चूहा चिंटू ने और तेज़ी से जाल काटा। कछुआ धीरू ने कहा, “तेजू, जैसे ही जाल कटे, तुम भाग जाना। हम सब अलग-अलग दिशाओं में भागेंगे।”
जाल कटते ही हिरण तेजू मुक्त हो गया। चूहा चिंटू और कौआ कालू तो तुरंत छुप गए, लेकिन कछुआ धीरू धीमी गति के कारण भाग नहीं सका। शिकारी ने उसे पकड़ लिया और एक थैले में डाल दिया।
जब तीनों मित्रों को पता चला कि धीरू पकड़ा गया है, तो वे बहुत दुखी हुए। हिरण तेजू ने कहा, “धीरू ने मेरी जान बचाई है। अब मैं उसे बचाऊंगा।”
कौआ कालू ने एक योजना बनाई। उसने कहा, “तेजू, तुम शिकारी के सामने जाकर लंगड़ाकर चलना। वह तुम्हें पकड़ने के लिए कछुए को नीचे रख देगा। तब चिंटू थैला काटकर धीरू को मुक्त कर देगा।”
योजना के अनुसार हिरण तेजू शिकारी के सामने आकर लंगड़ाने लगा। शिकारी ने सोचा कि यह घायल हिरण आसानी से पकड़ा जा सकता है। उसने कछुए का थैला नीचे रखा और हिरण के पीछे भागा।
तुरंत चूहा चिंटू ने थैला काटा और कछुआ धीरू को मुक्त कर दिया। फिर हिरण तेजू तेज़ी से भागकर शिकारी से बच गया। चारों मित्र सुरक्षित स्थान पर पहुंचकर खुशी से गले मिले।
कछुआ धीरू ने आंखों में आंसू लेकर कहा, “आप सभी ने मेरी जान बचाई। सच्ची मित्रता का यही मतलब है।”
हिरण तेजू ने कहा, “हमने तो वही किया जो एक सच्चे मित्र को करना चाहिए। आपने भी मेरी जान बचाने में अपनी जान की परवाह नहीं की।”
उस दिन के बाद चारों मित्रों का बंधन और भी मजबूत हो गया। वे हमेशा एक-दूसरे की मदद करते रहे और खुशी से जंगल में रहते रहे।
नैतिक शिक्षा: सच्ची मित्रता में स्वार्थ नहीं होता। मित्र मुसीबत में एक-दूसरे का साथ देते हैं और अपनी जान की परवाह किए बिना दोस्त की रक्षा करते हैं। जब हम मिलकर काम करते हैं तो कोई भी कठिनाई हमें हरा नहीं सकती।
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