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हनुमान जी की शक्तियों का विस्मरण और जामवंत का उपदेश

बहुत समय पहले की बात है, जब त्रेता युग में भगवान श्री राम का राज्य था। उस समय हनुमान जी एक छोटे बालक थे और अपनी असीम शक्तियों से अवगत नहीं थे। यह कहानी हनुमान जी की शक्तियों का विस्मरण और उनके पुनः जागरण की है।

एक दिन हनुमान जी अपनी माता अंजना के साथ वन में विचरण कर रहे थे। वे अभी भी एक बालक थे और खेल-कूद में व्यस्त रहते थे। अचानक उन्होंने आकाश में चमकते हुए सूर्य को देखा। सूर्य देव का तेज देखकर हनुमान जी को लगा कि यह कोई मीठा फल है।

“माता, वह लाल-लाल फल कितना सुंदर लग रहा है! मैं उसे खाना चाहता हूं,” हनुमान जी ने अपनी माता से कहा।

माता अंजना ने समझाने की कोशिश की, “वत्स, वह सूर्य देव हैं, कोई फल नहीं। तुम उन तक नहीं पहुंच सकते।”

परंतु बालक हनुमान की जिद के आगे माता की बात नहीं चली। वे एक विशाल रूप धारण करके आकाश में उड़ गए। उनकी गति इतनी तेज थी कि देवता भी चकित रह गए। जब वे सूर्य के पास पहुंचे तो इंद्र देव ने उन्हें रोकने के लिए वज्र का प्रहार किया।

वज्र की चोट से हनुमान जी की ठुड्डी में चोट लगी और वे पृथ्वी पर गिर पड़े। इस घटना से पवन देव अत्यंत क्रोधित हुए और उन्होंने सारे संसार की वायु रोक दी। जब सभी प्राणी परेशान हो गए तो ब्रह्मा जी और अन्य देवताओं ने हनुमान जी को अनेक वरदान दिए।

परंतु एक श्राप भी मिला – जब तक कोई उन्हें उनकी शक्तियों की याद नहीं दिलाएगा, तब तक वे अपनी शक्तियों को भूले रहेंगे। यही था हनुमान जी की शक्तियों का विस्मरण का कारण।

समय बीतता गया और हनुमान जी एक साधारण वानर की भांति जीवन व्यतीत करने लगे। वे अपनी असीम शक्तियों को पूर्णतः भूल गए थे। वे वानरों के साथ खेलते, फल खाते और पेड़ों पर कूदते रहते थे।

जब भगवान राम वनवास में थे और सीता माता का हरण हो गया, तब राम और लक्ष्मण सीता जी की खोज में निकले। वे ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे जहां सुग्रीव रहते थे। वहीं उनकी भेंट हनुमान जी से हुई।

हनुमान जी ने राम-लक्ष्मण की सेवा की और उन्हें सुग्रीव से मिलवाया। राम जी ने सुग्रीव की सहायता की और बदले में सुग्रीव ने सीता जी की खोज का वचन दिया।

जब वानर सेना दक्षिण दिशा में सीता जी की खोज में निकली, तो वे समुद्र के किनारे पहुंचे। विशाल समुद्र को देखकर सभी वानर निराश हो गए। कोई भी समुद्र पार करने में सक्षम नहीं था।

तब वृद्ध जामवंत ने हनुमान जी से कहा, “हे पवन पुत्र! तुम अपनी शक्ति भूल गए हो। तुम्हारे पिता पवन देव हैं और तुम्हें अनेक देवताओं के आशीर्वाद प्राप्त हैं।”

जामवंत ने आगे कहा, “तुम बचपन में सूर्य तक पहुंच गए थे। तुम्हारी गति वायु के समान है। तुम पर्वतों को उखाड़ सकते हो और समुद्र को लांघ सकते हो।”

जामवंत के वचनों को सुनकर हनुमान जी की शक्तियों का विस्मरण दूर हो गया। उन्हें अपनी सारी शक्तियों का स्मरण हो आया। वे विशाल रूप धारण करके खड़े हो गए।

“जय श्री राम!” का उद्घोष करते हुए हनुमान जी ने एक विशाल छलांग लगाई और समुद्र पार कर गए। उन्होंने लंका में सीता माता को खोज निकाला और राम जी का संदेश पहुंचाया।

इस प्रकार जामवंत के उपदेश से हनुमान जी को अपनी शक्तियों का स्मरण हो आया। उन्होंने न केवल समुद्र लांघा बल्कि लंका में जाकर रावण की सेना से युद्ध भी किया।

शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कभी-कभी हम अपनी शक्तियों और क्षमताओं को भूल जाते हैं। एक सच्चे गुरु या मार्गदर्शक के वचन हमें अपनी वास्तविक शक्ति का एहसास दिला सकते हैं। हनुमान जी की तरह हमें भी अपने अंदर छुपी शक्तियों को पहचानना चाहिए और उनका सदुपयोग करना चाहिए।

जब हम भगवान राम के नाम का स्मरण करते हैं और धर्म के मार्ग पर चलते हैं, तो हमारी सभी शक्तियां जाग उठती हैं। हनुमान जी आज भी भक्तों की सहायता करते हैं और उन्हें अपनी शक्तियों का एहसास दिलाते हैं।

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