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हंस राजा और कौआ की शिक्षाप्रद कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर झील के किनारे हंस राजा अपने परिवार के साथ रहता था। वह अपनी सफेद चमकदार पंखों और गर्वीली चाल के लिए प्रसिद्ध था। झील के आसपास के सभी पक्षी उसका सम्मान करते थे।

उसी झील के पास एक पुराने पेड़ पर एक कौआ भी रहता था। कौआ हमेशा हंस राजा को देखकर जलता रहता था। वह सोचता था, “यह हंस राजा क्यों इतना प्रसिद्ध है? मैं भी तो उड़ सकता हूं, मैं भी तो चतुर हूं।”

एक दिन कौआ ने हंस राजा के पास जाकर कहा, “हंस राजा, आप बहुत घमंड करते हैं। क्या आप मेरे साथ उड़ने की प्रतियोगिता करेंगे?”

हंस राजा ने शांति से उत्तर दिया, “मित्र कौआ, मैं घमंड नहीं करता। लेकिन यदि तुम चाहते हो, तो हम प्रतियोगिता कर सकते हैं।”

अगले दिन सुबह, झील के किनारे सभी पक्षी इकट्ठे हुए। हंस राजा और कौआ दोनों तैयार खड़े थे। प्रतियोगिता का नियम था कि दोनों को झील के ऊपर से उड़कर दूसरे किनारे तक जाना था।

“तैयार हो जाओ!” एक बूढ़े उल्लू ने घोषणा की। “शुरू!”

दोनों पक्षी उड़ान भरे। शुरुआत में कौआ तेजी से आगे निकल गया। वह खुशी से चिल्लाया, “देखो, मैं हंस राजा से तेज हूं!”

लेकिन हंस राजा धीरे-धीरे, स्थिर गति से उड़ता रहा। उसकी सुंदर पंखें हवा में लहरा रही थीं। जब वे झील के बीच पहुंचे, तो कौआ थकने लगा।

“हांफ… हांफ… मैं बहुत थक गया हूं,” कौआ ने कहा। उसकी सांस फूलने लगी थी।

हंस राजा ने देखा कि कौआ मुश्किल में है। वह तुरंत कौआ के पास गया और बोला, “मित्र, मेरी पीठ पर बैठ जाओ। मैं तुम्हें किनारे तक पहुंचा दूंगा।”

कौआ को बहुत शर्म आई। उसने कहा, “लेकिन हंस राजा, हम तो प्रतियोगिता कर रहे थे। आप मेरी मदद क्यों कर रहे हैं?”

हंस राजा ने मुस्कराते हुए जवाब दिया, “मित्र कौआ, जीतना-हारना तो खेल है। लेकिन किसी की मदद करना हमारा धर्म है। तुम मेरे मित्र हो, प्रतिद्वंद्वी नहीं।”

कौआ की आंखों में आंसू आ गए। वह हंस राजा की पीठ पर बैठ गया और दोनों सुरक्षित किनारे पहुंच गए।

किनारे पहुंचकर कौआ ने हंस राजा के सामने सिर झुकाया और कहा, “हंस राजा, मुझे माफ कर दीजिए। मैं आपसे जलता था और घमंड में अंधा हो गया था। आज मैंने सीखा है कि सच्ची महानता दूसरों की मदद करने में है, न कि उन्हें नीचा दिखाने में।”

हंस राजा ने कौआ को गले लगाया और कहा, “मित्र, हम सभी की अपनी विशेषताएं हैं। तुम बहुत चतुर हो और मैं अच्छा उड़ सकता हूं। आओ, हम मिलकर इस झील को और भी सुंदर बनाएं।”

उस दिन के बाद, हंस राजा और कौआ सबसे अच्छे मित्र बन गए। कौआ ने अपनी चतुराई से झील की सफाई में मदद की, और हंस राजा ने अपनी उड़ान से सभी को प्रेरणा दी।

शिक्षा: इस कहानी से हमें सीख मिलती है कि ईर्ष्या और घमंड हमें अंधा बना देते हैं। सच्ची महानता दूसरों से प्रतिस्पर्धा करने में नहीं, बल्कि उनकी मदद करने और मित्रता बढ़ाने में है। जब हम दूसरों की अच्छाइयों को पहचानते हैं और अपनी कमियों को स्वीकार करते हैं, तभी हम सच्चे मित्र बन सकते हैं।

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