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बंदर और मगरमच्छ की मित्रता
बहुत समय पहले की बात है, एक नदी के किनारे एक विशाल जामुन का पेड़ था। उस पेड़ पर मीतू नाम का एक चतुर बंदर रहता था। मीतू बहुत दयालु और मिलनसार था। वह रोज़ मीठे-मीठे जामुन खाता और खुशी से झूला करता था।
उसी नदी में गजराज नाम का एक मगरमच्छ रहता था। गजराज अकेला था और उसका कोई मित्र नहीं था। एक दिन जब वह नदी की सतह पर तैर रहा था, तो उसने देखा कि पेड़ से कुछ मीठे जामुन गिर रहे हैं।
“ये जामुन कितने मीठे लग रहे हैं!” गजराज ने सोचा और एक जामुन खाया। जामुन इतना स्वादिष्ट था कि उसका मन प्रसन्न हो गया।
अगले दिन गजराज फिर उसी जगह आया। मीतू ने उसे देखा और पूछा, “मित्र, तुम रोज़ यहाँ क्यों आते हो?”
“मैं इन मीठे जामुनों के लिए आता हूँ,” गजराज ने उत्तर दिया। “ये बहुत स्वादिष्ट हैं।”
मीतू की दयालु आत्मा ने सोचा कि यह मगरमच्छ अकेला लगता है। उसने कहा, “मित्र, मैं तुम्हारे लिए रोज़ ताज़े जामुन तोड़कर दूंगा। तुम मेरे मित्र बनोगे?”
गजराज बहुत खुश हुआ। इस तरह बंदर और मगरमच्छ की अनोखी मित्रता शुरू हुई। रोज़ मीतू ताज़े जामुन तोड़कर गजराज को देता, और वे दोनों घंटों बातें करते।
कुछ महीनों बाद, गजराज ने अपनी पत्नी को मीतू के बारे में बताया। उसकी पत्नी बहुत चालाक और स्वार्थी थी। उसने कहा, “अगर यह बंदर इतने मीठे जामुन खाता है, तो इसका दिल कितना मीठा होगा! मुझे उसका दिल खाना है।”
गजराज परेशान हो गया। उसे अपने मित्र को धोखा नहीं देना चाहता था, लेकिन पत्नी के दबाव में वह मजबूर था।
अगले दिन गजराज ने मीतू से कहा, “मित्र, मेरी पत्नी तुमसे मिलना चाहती है। क्या तुम मेरे घर चलोगे?”
मीतू खुशी से तैयार हो गया। वह गजराज की पीठ पर बैठकर नदी के बीच में जाने लगा। जब वे नदी के बीच पहुँचे, तो गजराज का दिल भारी हो गया।
“मित्र, मुझे तुमसे सच कहना है,” गजराज ने कहा। “मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती है। मैं तुम्हें धोखा दे रहा हूँ।”
मीतू घबराया लेकिन उसने अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। उसने हँसते हुए कहा, “अरे मित्र! तुमने पहले क्यों नहीं बताया? मैं अपना दिल तो पेड़ पर ही छोड़ आया हूँ। हम बंदर अपना दिल हमेशा पेड़ पर सुरक्षित रखते हैं।”
गजराज को लगा कि यह सच है। उसने कहा, “तो चलो वापस चलते हैं और तुम अपना दिल ले आओ।”
जैसे ही वे किनारे पहुँचे, मीतू तुरंत पेड़ पर चढ़ गया। ऊपर से उसने कहा, “गजराज मित्र, कोई भी जीव अपना दिल शरीर से अलग नहीं रख सकता। तुमने मुझे मारने की कोशिश की, लेकिन मैं तुम्हें माफ करता हूँ क्योंकि तुमने सच बताया।”
“लेकिन अब हमारी मित्रता समाप्त हो गई। जो व्यक्ति एक बार धोखा दे देता है, उस पर फिर भरोसा नहीं किया जा सकता।”
गजराज को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह बहुत पछताया लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। वह अकेला वापस चला गया।
नैतिक शिक्षा: सच्ची मित्रता में धोखा और स्वार्थ की कोई जगह नहीं होती। बुद्धि और सूझबूझ से हर मुसीबत से निकला जा सकता है। एक बार टूटा हुआ भरोसा दोबारा जोड़ना बहुत मुश्किल होता है।














