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अकबर बीरबल और अदृश्य वस्त्र की कहानी

बादशाह अकबर के दरबार में एक दिन एक अजीब घटना घटी। दरबार में एक चतुर व्यापारी आया जो अपने साथ एक सुंदर संदूक लेकर आया था।

व्यापारी ने बादशाह के सामने झुकते हुए कहा, “जहांपनाह, मैं दूर देश से आया हूं और आपके लिए एक अनमोल उपहार लाया हूं।”

अकबर ने उत्सुकता से पूछा, “क्या है वह उपहार?”

व्यापारी ने संदूक खोला और कहा, “महाराज, यह अदृश्य वस्त्र है। यह केवल बुद्धिमान और योग्य व्यक्ति को ही दिखाई देता है। मूर्ख और अयोग्य लोगों को यह कपड़ा नजर नहीं आता।”

दरबारी चकित रह गए। व्यापारी ने हवा में हाथ हिलाते हुए कहा, “देखिए महाराज, कितना सुंदर और मुलायम है यह अदृश्य वस्त्र। इसकी बुनाई देखिए, कितनी बारीक है!”

अकबर ने ध्यान से देखा लेकिन उन्हें कुछ भी नजर नहीं आया। परंतु वे यह स्वीकार नहीं करना चाहते थे कि वे कुछ नहीं देख पा रहे। उन्होंने कहा, “हां, वाकई बहुत सुंदर है।”

दरबारियों ने भी डर के मारे कहा, “जी हां महाराज, कितना अद्भुत अदृश्य वस्त्र है!” सभी को डर था कि कहीं वे मूर्ख न समझे जाएं।

व्यापारी ने कहा, “महाराज, यदि आप चाहें तो मैं आपके लिए इस अदृश्य वस्त्र से एक शाही पोशाक तैयार कर सकता हूं।”

अकबर खुश हो गए और बोले, “अवश्य! तुम्हें जो भी चाहिए, वह दिया जाएगा।”

व्यापारी ने कहा, “महाराज, इस अदृश्य वस्त्र को सिलने के लिए मुझे सोने के धागे, हीरे-मोती और एक हजार स्वर्ण मुद्राएं चाहिए।”

अकबर ने तुरंत सब कुछ दे दिया। व्यापारी ने कहा कि उसे काम पूरा करने में तीन दिन लगेंगे।

तीन दिन बाद व्यापारी वापस आया। उसके हाथ में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, लेकिन वह बड़े गर्व से कह रहा था, “महाराज, आपकी शाही पोशाक तैयार है। यह अदृश्य वस्त्र से बना सबसे सुंदर जोड़ा है।”

अकबर ने कहा, “बहुत खूब! मैं कल इसे पहनकर दरबार में आऊंगा।”

अगले दिन अकबर ने वह अदृश्य वस्त्र पहना। वास्तव में वे बिना कपड़ों के ही दरबार में आए, लेकिन सभी दरबारी डर के मारे तारीफ कर रहे थे।

“वाह महाराज, कितनी सुंदर पोशाक है!”

“इतना सुंदर अदृश्य वस्त्र कभी नहीं देखा!”

केवल बीरबल चुप खड़े थे। अकबर ने पूछा, “बीरबल, तुम कुछ नहीं कह रहे? मेरी इस नई पोशाक के बारे में क्या राय है?”

बीरबल ने मुस्कराते हुए कहा, “जहांपनाह, यह अदृश्य वस्त्र वाकई अनोखा है। यह इतना पारदर्शी है कि आपकी त्वचा साफ दिखाई दे रही है।”

अकबर समझ गए कि बीरबल कुछ और कहना चाह रहे हैं। उन्होंने कहा, “बीरबल, सच कहो, तुम्हें क्या दिख रहा है?”

बीरबल ने विनम्रता से कहा, “महाराज, मुझे कोई अदृश्य वस्त्र नजर नहीं आ रहा। यह व्यापारी आपको मूर्ख बना रहा है। वास्तव में कोई जादुई कपड़ा नहीं है।”

अकबर को एहसास हुआ कि वे धोखे में आ गए हैं। उन्होंने गुस्से से व्यापारी को बुलाया, लेकिन वह तो अपना सामान लेकर भाग चुका था।

अकबर ने शर्मिंदगी से कहा, “बीरबल, तुमने सच कहने का साहस दिखाया। बाकी सभी डर के मारे झूठ बोल रहे थे।”

बीरबल ने कहा, “महाराज, सच कहना हमेशा बेहतर होता है, चाहे वह कितना भी कड़वा हो। झूठी तारीफ से कोई फायदा नहीं होता।”

अकबर ने महसूस किया कि अहंकार और दिखावे के चक्कर में वे एक धोखेबाज के जाल में फंस गए थे। उन्होंने सभी दरबारियों से कहा, “आज से हमारे दरबार में केवल सच बोला जाएगा, चाहे वह कितना भी अप्रिय हो।”

इस घटना के बाद अकबर ने समझा कि अदृश्य वस्त्र जैसी चीजों पर विश्वास करना मूर्खता है। सच्चाई यह थी कि कोई भी कपड़ा अदृश्य नहीं होता। व्यापारी ने लोगों के डर और अहंकार का फायदा उठाया था।

सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें हमेशा सच बोलना चाहिए और सच को स्वीकार करने का साहस रखना चाहिए। दिखावे और झूठी शान के चक्कर में हमें नहीं पड़ना चाहिए। बीरबल की तरह ईमानदारी और साहस दिखाना चाहिए, भले ही दूसरे लोग हमारी बात पसंद न करें।

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