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सियार और ढोल की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में चतुर नाम का एक सियार रहता था। वह बहुत ही बुद्धिमान और चालाक था, लेकिन कभी-कभी उसकी जिज्ञासा उसे मुसीबत में डाल देती थी।
एक दिन चतुर भोजन की तलाश में जंगल में घूम रहा था। अचानक उसे दूर से एक अजीब सी आवाज़ सुनाई दी – “धम्म धम्म धम्म!” यह आवाज़ बहुत तेज़ और डरावनी थी। सियार पहले तो डर गया, लेकिन फिर उसकी जिज्ञासा जाग उठी।
“यह कैसी आवाज़ है?” चतुर ने मन में सोचा। “कहीं कोई बहुत बड़ा और शक्तिशाली जानवर तो नहीं है। अगर मैं उससे दोस्ती कर लूं, तो शायद मुझे आसानी से भोजन मिल जाए।”
आवाज़ का पीछा करते हुए, सियार एक पुराने युद्ध के मैदान में पहुंचा। वहां उसे एक बड़ा सा ढोल दिखाई दिया जो एक पेड़ की शाखा के नीचे पड़ा हुआ था। हवा चलने पर पेड़ की शाखाएं ढोल से टकराती थीं और “धम्म धम्म” की आवाज़ निकालती थीं।
चतुर ने सोचा, “वाह! यह तो कोई जादुई चीज़ लगती है। इसके अंदर ज़रूर कुछ खज़ाना या स्वादिष्ट भोजन होगा।” वह ढोल के पास गया और उसे ध्यान से देखने लगा।
ढोल बहुत बड़ा और चमकदार था। उसकी सतह चमड़े से बनी थी और वह देखने में बहुत प्रभावशाली लगता था। सियार ने सोचा कि इसके अंदर ज़रूर कुछ बहुमूल्य चीज़ें होंगी।
“अरे वाह!” चतुर खुशी से चिल्लाया। “मैंने तो आज लॉटरी जीत ली है। इस बड़े से ढोल के अंदर न जाने कितना सोना-चांदी या मांस होगा। मैं तो राजा बन जाऊंगा!”
बिना कुछ और सोचे, उसने अपने तेज़ नाखूनों से ढोल को फाड़ना शुरू कर दिया। “छप्प छप्प” की आवाज़ के साथ चमड़ा फटने लगा।
लेकिन जब ढोल पूरी तरह फट गया, तो सियार की आंखें फटी की फटी रह गईं। अंदर कुछ भी नहीं था – न सोना, न चांदी, न मांस, न कोई खाना। सिर्फ़ खाली जगह थी!
“अरे यह क्या!” चतुर निराश होकर बोला। “मैंने तो सोचा था कि इसमें बहुत सारा खज़ाना होगा। लेकिन यह तो बिल्कुल खाली है!”
अब सियार को एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती की थी। वह सिर्फ़ बाहरी दिखावे से प्रभावित होकर गलत निष्कर्ष पर पहुंच गया था। ढोल सिर्फ़ हवा से आवाज़ करता था, उसके अंदर कुछ भी नहीं था।
उदास और शर्मिंदा होकर चतुर वहां से चला गया। रास्ते में उसे एक बुजुर्ग खरगोश मिला जिसने उसकी परेशानी देखी।
“क्या बात है बेटे, तुम इतने उदास क्यों लग रहे हो?” खरगोश ने पूछा।
चतुर ने अपनी पूरी कहानी सुनाई। खरगोश ने मुस्कराते हुए कहा, “बेटे, यह एक अच्छा सबक है। हमेशा याद रखना कि जो चीज़ें बाहर से बहुत आकर्षक लगती हैं, ज़रूरी नहीं कि वे अंदर से भी उतनी ही अच्छी हों।“
सियार ने सिर हिलाया और कहा, “आपकी बात बिल्कुल सही है। मुझे पहले सोचना चाहिए था। अब मैं कभी भी सिर्फ़ दिखावे पर भरोसा नहीं करूंगा।”
उस दिन के बाद से चतुर हमेशा सोच-समझकर फैसला लेता था। वह समझ गया था कि असली खुशी और सफलता मेहनत से मिलती है, न कि झूठे सपनों से।
कहानी की सीख: हमें कभी भी केवल बाहरी दिखावे से प्रभावित नहीं होना चाहिए। जो चीज़ें बाहर से चमकदार और आकर्षक लगती हैं, ज़रूरी नहीं कि वे अंदर से भी उतनी ही अच्छी हों। हमेशा धैर्य रखकर और सोच-समझकर निर्णय लेना चाहिए। मेहनत और सच्चाई से मिली चीज़ें ही स्थायी खुशी देती हैं।
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