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सिंह और सियार के साथी
बहुत समय पहले की बात है, एक घने जंगल में राजा सिंह रहता था। वह बहुत शक्तिशाली और बहादुर था, लेकिन अकेला था। उसके पास कोई सच्चा मित्र नहीं था।
एक दिन जंगल में घूमते समय राजा सिंह की मुलाकात चतुर सियार से हुई। सियार बहुत चालाक था और उसने सिंह से कहा, “महाराज, मैं आपका सबसे वफादार साथी बनना चाहता हूँ।”
सिंह को यह बात अच्छी लगी और उसने सियार को अपना साथी बना लिया। धीरे-धीरे सिंह और सियार के साथी बनने की खबर पूरे जंगल में फैल गई।
सियार बहुत चतुर था। वह सिंह की हर बात मानता और उसकी तारीफ करता रहता। “आप तो सबसे महान राजा हैं!” वह रोज कहता। सिंह को यह सुनकर बहुत खुशी होती।
कुछ दिनों बाद, सियार ने सिंह से कहा, “महाराज, जंगल के दूसरे छोर पर बहुत मोटे-ताजे हिरण रहते हैं। वहाँ चलकर शिकार करते हैं।”
सिंह और सियार उस तरफ चल पड़े। रास्ते में उन्हें एक बूढ़ा बुद्धिमान कछुआ मिला। कछुए ने सिंह को चेतावनी दी, “राजन, इस सियार पर भरोसा मत करिए। यह केवल अपना फायदा देखता है।”
लेकिन सिंह ने कछुए की बात नहीं मानी। वह सियार के साथ आगे बढ़ता गया।
जब वे उस जगह पहुँचे, तो वहाँ हिरणों के बजाय शिकारियों के जाल बिछे हुए थे। सियार को यह पता था, इसलिए वह सावधानी से चलता रहा, लेकिन सिंह एक बड़े जाल में फँस गया।
“सियार मित्र, मुझे बचाओ!” सिंह ने पुकारा। लेकिन सियार हँसते हुए बोला, “अब मैं इस जंगल का राजा हूँ। तुम्हारी जरूरत नहीं!”
यह कहकर सियार वहाँ से भाग गया। सिंह को समझ आ गया कि उसने गलत व्यक्ति पर भरोसा किया था।
तभी वहाँ वही बुद्धिमान कछुआ आया। उसने अपने दाँतों से जाल काटकर सिंह को आजाद कराया। “धन्यवाद मित्र,” सिंह ने कहा। “मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी थी।”
कछुए ने मुस्कराते हुए कहा, “राजन, सच्चे मित्र वही होते हैं जो मुश्किल समय में साथ देते हैं, न कि वे जो केवल तारीफ करते रहते हैं।”
उस दिन के बाद सिंह और कछुआ सच्चे मित्र बन गए। सिंह ने सीखा कि चापलूसी करने वाले लोग सच्चे साथी नहीं होते।
नैतिक शिक्षा: सच्चे मित्र वे होते हैं जो हमारी भलाई चाहते हैं और मुश्किल समय में साथ देते हैं। केवल तारीफ करने वाले और चापलूसी करने वाले लोगों से सावधान रहना चाहिए। बुद्धिमान व्यक्ति हमेशा अच्छी सलाह देते हैं, उनकी बात सुननी चाहिए। सियार और लड़ते बकरों की कहानी में भी इसी तरह की सीख मिलती है।











