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राजा और घमंडी मंत्री की शिक्षाप्रद कहानी
बहुत समय पहले, एक सुंदर जंगल में शेर राजा सिंहराज का राज्य था। वह एक न्यायप्रिय और दयालु राजा था। उसके राज्य में सभी जानवर खुशी से रहते थे। राजा सिंहराज के पास एक मंत्री था – चालाक लोमड़ी चतुरसिंह, जो बहुत ही घमंडी और अहंकारी था।
चतुरसिंह हमेशा अपनी चतुराई का घमंड करता रहता था। वह दूसरे जानवरों को नीचा दिखाने में खुशी महसूस करता था। राजा और घमंडी मंत्री के बीच का रिश्ता दिन-प्रतिदिन बिगड़ता जा रहा था, क्योंकि मंत्री अपने घमंड में राजा की सलाह भी नहीं मानता था।
एक दिन जंगल में भयानक सूखा पड़ा। सभी तालाब और नदियां सूख गईं। जानवर प्यास से बेहाल हो गए। राजा सिंहराज ने अपने मंत्री चतुरसिंह को बुलाया और कहा, “मंत्री जी, हमें पानी की व्यवस्था करनी होगी। आप क्या सुझाव देते हैं?”
घमंडी मंत्री चतुरसिंह ने अकड़ते हुए कहा, “महाराज, मैं सबसे चतुर हूं। मैं अकेले ही पानी का इंतजाम कर दूंगा। किसी और की सहायता की जरूरत नहीं।” राजा ने समझाने की कोशिश की, लेकिन मंत्री अपनी जिद पर अड़ा रहा।
चतुरसिंह अकेले ही पानी की तलाश में निकल पड़ा। उसने कई दिन तक जंगल में भटकने के बाद एक छोटा सा झरना देखा। लेकिन वह झरना एक गहरी खाई में था। मंत्री ने सोचा कि वह अकेले ही नीचे उतरकर पानी ला सकता है।
जब चतुरसिंह खाई में उतरा, तो वह फिसलकर नीचे गिर गया और घायल हो गया। वह चिल्लाने लगा, “बचाओ! कोई मेरी मदद करो!” लेकिन वहां कोई नहीं था। राजा और घमंडी मंत्री की यह स्थिति बहुत गंभीर हो गई थी।
इधर राजा सिंहराज चिंतित था। उसने हाथी गजराज, बंदर हनुमान, और कछुआ धीरज को बुलाया। सभी ने मिलकर एक योजना बनाई। हाथी अपनी सूंड से पानी लाने का काम करेगा, बंदर ऊंचे पेड़ों से फल लाएगा, और कछुआ धीरे-धीरे सभी जानवरों तक पानी पहुंचाने का काम करेगा।
जब टीम ने झरने की तलाश की, तो उन्होंने चतुरसिंह की आवाज सुनी। हाथी गजराज ने अपनी मजबूत सूंड से मंत्री को बाहर निकाला। चतुरसिंह शर्म से पानी-पानी हो गया। उसे एहसास हुआ कि उसका घमंड कितना गलत था।
राजा सिंहराज ने प्रेम से कहा, “मंत्री जी, अकेले कोई भी काम पूरा नहीं होता। मिलजुलकर काम करने से ही सफलता मिलती है।” चतुरसिंह ने राजा और सभी जानवरों से माफी मांगी।
उसके बाद सभी जानवरों ने मिलकर पूरे जंगल में पानी की व्यवस्था की। हाथी पानी लाता, बंदर उसे बांटता, कछुआ दूर-दराज के इलाकों में पहुंचाता। राजा और घमंडी मंत्री अब मिलकर काम करने लगे।
चतुरसिंह ने अपना घमंड छोड़ दिया और एक अच्छा मंत्री बन गया। वह हमेशा दूसरों की मदद करता और विनम्रता से पेश आता। राजा सिंहराज खुश था कि उसके मंत्री ने अपनी गलती मान ली।
शिक्षा: घमंड और अहंकार हमेशा हमारे पतन का कारण बनते हैं। मिलजुलकर काम करने से हर मुश्किल आसान हो जाती है। सच्ची शक्ति एकता में है, अकेलेपन में नहीं। हमें हमेशा विनम्र रहना चाहिए और दूसरों का सम्मान करना चाहिए। सामाजिकता की कहानी से भी हमें यह सीख मिलती है कि एकता में ही शक्ति है।














