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महिषासुर वध की कथा – माँ दुर्गा की विजय

बहुत समय पहले की बात है, जब पृथ्वी पर अधर्म का राज था। उस समय महिषासुर नाम का एक शक्तिशाली राक्षस था। वह आधा मनुष्य और आधा भैंसा था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया था कि कोई भी पुरुष या देवता उसे नहीं मार सकता।

इस वरदान के कारण महिषासुर अत्यंत घमंडी हो गया। उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए स्वर्गलोक पर आक्रमण कर दिया। देवताओं से युद्ध में उसने इंद्र को हरा दिया और स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।

“अब मैं तीनों लोकों का राजा हूँ!” महिषासुर ने गर्व से कहा। उसने देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और वहाँ अपना राज्य स्थापित कर लिया।

परेशान देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए। उन्होंने अपनी समस्या बताई। तीनों देवों ने समझा कि यह समस्या केवल माँ शक्ति ही हल कर सकती हैं।

तब तीनों देवों के तेज से एक अद्भुत ज्योति प्रकट हुई। उस ज्योति से माँ दुर्गा का प्राकट्य हुआ। माँ का रूप अत्यंत सुंदर और तेजस्वी था। उनके दस हाथ थे और हर हाथ में अलग-अलग अस्त्र-शस्त्र थे।

सभी देवताओं ने माँ दुर्गा को अपने-अपने शस्त्र भेंट किए। भगवान शिव ने त्रिशूल, विष्णु जी ने सुदर्शन चक्र, इंद्र ने वज्र, और ब्रह्मा जी ने कमंडल दिया। सूर्य देव ने अपनी किरणें और अग्नि देव ने अपनी ज्वाला प्रदान की।

माँ दुर्गा ने एक सुंदर सिंह को अपना वाहन बनाया। वे युद्ध के लिए तैयार हो गईं। जब महिषासुर को पता चला कि एक देवी उससे युद्ध करने आ रही है, तो वह हँसा।

“एक स्त्री मुझसे युद्ध करेगी? यह तो मजाक है!” महिषासुर ने अपने सेनापतियों से कहा।

महिषासुर ने अपनी विशाल सेना के साथ माँ दुर्गा पर आक्रमण किया। युद्ध भूमि में भयंकर लड़ाई शुरू हुई। माँ दुर्गा ने अकेले ही हजारों राक्षसों का संहार किया।

जब महिषासुर के सेनापति चिक्षुर और चामर माँ दुर्गा के सामने आए, तो माँ ने उन्हें भी परास्त कर दिया। उनके त्रिशूल की मार से राक्षसों की सेना भागने लगी।

अंत में महिषासुर स्वयं युद्ध भूमि में आया। वह कभी भैंसे का रूप लेता, कभी सिंह का, और कभी हाथी का। लेकिन माँ दुर्गा हर रूप में उसका सामना करती रहीं।

“तुम्हारा अंत समय आ गया है, महिषासुर!” माँ दुर्गा ने गर्जना की।

अंतिम युद्ध में महिषासुर ने अपना असली भैंसे का रूप धारण किया। वह अपने सींगों से पहाड़ों को उखाड़ने लगा और समुद्र को मथने लगा। पूरी पृथ्वी काँप रही थी।

माँ दुर्गा ने अपना पैर महिषासुर की गर्दन पर रखा और त्रिशूल से उसका वध कर दिया। महिषासुर वध के साथ ही पृथ्वी पर फिर से धर्म की स्थापना हुई।

देवताओं ने माँ दुर्गा की जय-जयकार की। “जय माँ दुर्गा! जय महिषासुर मर्दिनी!” सभी ने एक स्वर में कहा।

माँ दुर्गा ने सभी को आशीर्वाद दिया और कहा, “जब भी पृथ्वी पर अधर्म बढ़ेगा, मैं फिर से अवतार लूंगी। मेरे भक्त जो भी सच्चे मन से मुझे पुकारेंगे, मैं उनकी रक्षा करूंगी।”

इस प्रकार महिषासुर वध की कथा समाप्त हुई। यह कहानी हमें सिखाती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली हो, अच्छाई हमेशा जीतती है। माँ दुर्गा की शक्ति असीम है और वे हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करती हैं।

आज भी नवरात्रि के पावन पर्व पर हम माँ दुर्गा के इस महान कार्य को याद करते हैं। महिषासुर वध की यह गाथा हमें प्रेरणा देती है कि हमें भी अपने जीवन में बुराई का सामना करना चाहिए और हमेशा सत्य का साथ देना चाहिए।

माँ दुर्गा का यह रूप महिषासुर मर्दिनी के नाम से प्रसिद्ध है। वे हमारी रक्षक हैं, हमारी माता हैं। जब भी हम मुश्किल में होते हैं, माँ दुर्गा का नाम लेने से हमें शक्ति मिलती है। यह कहानी भी हमें सिखाती है कि कठिनाइयों का सामना कैसे करना चाहिए।

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