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लक्ष्मी की उत्पत्ति – समुद्र मंथन की अद्भुत कहानी
बहुत समय पहले की बात है, जब देवता और असुर दोनों ही अमृत पाने की इच्छा रखते थे। अमृत वह दिव्य रस था जो पीने से कोई भी अमर हो जाता था। इस अमृत को पाने के लिए समुद्र मंथन करना आवश्यक था।
देवराज इंद्र ने सभी देवताओं को बुलाया और कहा, “हे देवगण! हमें अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन करना होगा। परंतु यह कार्य अकेले संभव नहीं है।”
भगवान विष्णु ने सुझाव दिया, “हमें असुरों से सहायता लेनी होगी। उनसे कहें कि अमृत मिलने पर आधा हिस्सा उनका होगा।”
असुरों के राजा बलि ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। अब समुद्र मंथन की तैयारी शुरू हुई। मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया और वासुकि नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया।
जब समुद्र मंथन शुरू हुआ, तो सबसे पहले हलाहल विष निकला। यह इतना भयानक विष था कि पूरे संसार को नष्ट कर सकता था। भगवान शिव ने इस विष को पी लिया और अपने गले में रोक लिया, जिससे उनका गला नीला हो गया।
मंथन जारी रहा। धीरे-धीरे समुद्र से अनेक अद्भुत वस्तुएं निकलीं – कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, और कल्पवृक्ष। सभी देवता और असुर इन अनमोल रत्नों को देखकर आश्चर्यचकित हो गए।
अचानक समुद्र में एक दिव्य प्रकाश फैला। सभी की आंखें चकाचौंध हो गईं। उस प्रकाश से एक अत्यंत सुंदर देवी प्रकट हुईं। उनके हाथों में कमल के फूल थे, और वे स्वर्णिम वस्त्र पहने हुए थीं।
“यह कौन हैं?” सभी देवता और असुर आश्चर्य से पूछने लगे।
ब्रह्मा जी ने कहा, “ये माता लक्ष्मी हैं – धन, समृद्धि और सौभाग्य की देवी। लक्ष्मी की उत्पत्ति इसी समुद्र मंथन से हुई है।”
माता लक्ष्मी ने अपनी मधुर आवाज में कहा, “मैं उसी के पास रहूंगी जो धर्म का पालन करता है और सभी प्राणियों के कल्याण की सोचता है।”
सभी देवता और असुर माता लक्ष्मी को पाने की इच्छा करने लगे। परंतु माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की ओर देखा। उन्होंने देखा कि विष्णु जी सदैव धर्म की रक्षा करते हैं और संसार के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।
माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाली और कहा, “हे नारायण! आप सदैव धर्म के रक्षक हैं। मैं आपकी अर्धांगिनी बनना चाहती हूं।”
भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर कहा, “हे लक्ष्मी! आपका स्वागत है। आप मेरे साथ रहकर संसार में धन और समृद्धि का वितरण करेंगी।”
इस प्रकार लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई। माता लक्ष्मी ने कहा, “जो भी व्यक्ति मेहनत करेगा, ईमानदारी से काम करेगा और दूसरों की सहायता करेगा, मैं उसके घर में निवास करूंगी।”
समुद्र मंथन जारी रहा और अंत में अमृत निकला। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण करके अमृत को देवताओं में बांटा।
माता लक्ष्मी ने सभी देवताओं को आशीर्वाद दिया और कहा, “मैं हमेशा उन लोगों के साथ रहूंगी जो अच्छे कर्म करते हैं। जो लोग झूठ बोलते हैं या दूसरों को हानि पहुंचाते हैं, मैं उनसे दूर रहती हूं।”
तब से माता लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ रहकर संसार में धन, समृद्धि और खुशियां बांटती हैं। वे उन घरों में निवास करती हैं जहां स्वच्छता, प्रेम और धर्म का पालन होता है।
इसीलिए आज भी लोग दीपावली के दिन अपने घरों को साफ करते हैं, दीप जलाते हैं और माता लक्ष्मी की पूजा करते हैं। वे माता से प्रार्थना करते हैं कि वे उनके घर में सदैव निवास करें।
यह कहानी हमें सिखाती है कि धन और समृद्धि पाने के लिए हमें अच्छे कर्म करने चाहिए, मेहनत करनी चाहिए और दूसरों की सहायता करनी चाहिए। माता लक्ष्मी हमेशा अच्छे लोगों के साथ रहती हैं।













