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कछुआ और हंस की अनोखी मित्रता

बहुत समय पहले की बात है, एक सुंदर तालाब के किनारे कछुआ रहता था। उसका नाम था मंदबुद्धि। वह बहुत धीमी गति से चलता था लेकिन बहुत बुद्धिमान और विनम्र था। उसी तालाब में दो हंस भी रहते थे – सुंदर और तेजस्वी।

तीनों में गहरी मित्रता थी। कछुआ और हंस रोज मिलते, बातें करते और एक-दूसरे की सहायता करते थे। हंस आकाश की ऊंचाइयों की कहानियां सुनाते और कछुआ धरती की गहराई के किस्से बताता।

एक दिन भयंकर सूखा पड़ा। तालाब का पानी सूखने लगा। हंसों ने कछुए से कहा, “मित्र मंदबुद्धि, हमें यहां से जाना होगा। हम दूर के एक बड़े तालाब के बारे में जानते हैं।”

कछुआ उदास हो गया। वह बोला, “तुम तो उड़ सकते हो, लेकिन मैं कैसे आऊंगा? मैं तो बहुत धीमा हूं।”

हंसों ने सोचा और एक उपाय निकाला। वे बोले, “हम एक मजबूत लकड़ी लाएंगे। तुम उसे अपने मुंह से कसकर पकड़ना और हम दोनों उसके दोनों सिरे पकड़कर उड़ेंगे।”

लेकिन उन्होंने चेतावनी दी, “याद रखना, रास्ते में कुछ भी बोलना मत। अगर तुमने मुंह खोला तो गिर जाओगे।”

कछुआ खुशी से राजी हो गया। अगले दिन योजना के अनुसार, कछुआ और हंस ने यात्रा शुरू की। कछुए ने लकड़ी को मजबूती से पकड़ा और हंस उसे लेकर आकाश में उड़ने लगे।

नीचे से लोग इस अजीब दृश्य को देखकर हैरान हो रहे थे। कुछ बच्चे चिल्लाए, “देखो, कछुआ उड़ रहा है! कितना मूर्ख है यह!”

कछुए को बहुत गुस्सा आया। वह सोचा, “ये लोग मुझे मूर्ख कह रहे हैं। मैं इन्हें बताऊंगा कि मैं कितना चतुर हूं।”

अपने गुस्से को रोक न पाकर, कछुए ने चिल्लाकर कहा, “मैं मूर्ख नहीं हूं! मैं बहुत चतुर हूं!”

जैसे ही उसने मुंह खोला, लकड़ी छूट गई और वह तेजी से नीचे गिरने लगा। हंसों ने उसे बचाने की कोशिश की लेकिन बहुत देर हो चुकी थी।

सौभाग्य से कछुआ एक नरम घास के मैदान में गिरा और बच गया, लेकिन उसे चोट आई। हंस तुरंत नीचे आए और अपने मित्र की देखभाल की।

कछुआ बहुत पछताया। उसने कहा, “मित्रों, मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी। मेरे अहंकार और गुस्से की वजह से यह हादसा हुआ।”

हंसों ने प्रेम से कहा, “कोई बात नहीं मित्र। गलती से सीखना भी जरूरी है। अब हम धीरे-धीरे पैदल चलकर नए तालाब तक जाएंगे।”

इस प्रकार कछुआ और हंस की मित्रता और भी मजबूत हो गई। कछुए ने सीखा कि धैर्य और आत्म-नियंत्रण जीवन में सबसे महत्वपूर्ण गुण हैं।

नैतिक शिक्षा: अनुशासन और धैर्य सफलता की कुंजी हैं। गुस्से और अहंकार में लिए गए फैसले हमेशा नुकसानदायक होते हैं। सच्चे मित्र हमेशा हमारी भलाई चाहते हैं, इसलिए उनकी सलाह मानना चाहिए।

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