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झूठ के पांव नहीं होते – चालाक लोमड़ी की कहानी
एक घने जंगल में चंचल नाम की एक लोमड़ी रहती थी। वह बहुत चालाक थी, लेकिन उसकी एक बुरी आदत थी – वह हमेशा झूठ बोलती थी। जंगल के सभी जानवर उससे परेशान रहते थे क्योंकि वह छोटी-छोटी बातों में भी झूठ का सहारा लेती थी।
एक दिन जंगल में राजू खरगोश अपने बच्चों के साथ गाजर खोद रहा था। उसने मेहनत करके एक बड़ा ढेर गाजरों का इकट्ठा किया था। चंचल लोमड़ी की नजर उन स्वादिष्ट गाजरों पर पड़ी और उसके मुंह में पानी आ गया।
“अरे राजू भाई, ये गाजरें तो बहुत अच्छी लग रही हैं!” चंचल ने मीठी आवाज में कहा।
“हां चंचल, मैंने बहुत मेहनत से इन्हें उगाया है। ये मेरे बच्चों के लिए हैं,” राजू ने जवाब दिया।
चंचल के दिमाग में एक चालाकी सूझी। उसने कहा, “राजू भाई, मैंने सुना है कि जंगल के दूसरी तरफ बहुत बड़ा गाजर का खेत है। वहां की गाजरें इनसे भी मीठी हैं। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हें वहां ले चल सकती हूं।”
राजू खरगोश को लालच आ गया। वह अपनी गाजरें वहीं छोड़कर चंचल के साथ चल दिया। जैसे ही राजू गया, चंचल ने झट से सारी गाजरें अपनी मांद में छुपा लीं।
जब राजू वापस आया तो उसकी सारी गाजरें गायब थीं। वह बहुत परेशान हो गया। उसने चंचल से पूछा, “चंचल, मेरी गाजरें कहां गईं?”
“मुझे नहीं पता राजू भाई। शायद कोई और जानवर ले गया हो,” चंचल ने झूठ बोला।
अगले दिन मोती कबूतर अपने दानों का ढेर लगाकर पानी पीने गई। चंचल ने फिर वही चाल चली। उसने मोती से कहा कि पास की नदी में बहुत साफ और मीठा पानी है। मोती के जाने के बाद चंचल ने सारे दाने चुरा लिए।
इसी तरह चंचल ने चीकू गिलहरी के अखरोट और गोलू भालू का शहद भी चुरा लिया। हर बार वह झूठ बोलकर जानवरों को बहकाती और उनका सामान चुरा लेती।
एक दिन जंगल के बुजुर्ग दादा जी हाथी ने सभी जानवरों की सभा बुलाई। सभी अपनी-अपनी समस्या लेकर आए। राजू खरगोश ने अपनी गाजरों के बारे में बताया, मोती कबूतर ने अपने दानों के बारे में, और बाकी सभी ने अपनी परेशानियों के बारे में।
दादा जी हाथी समझ गए कि यह सब चंचल लोमड़ी की करतूत है। उन्होंने एक योजना बनाई।
अगले दिन दादा जी हाथी ने चंचल से कहा, “चंचल बेटी, मैंने सुना है तुम बहुत ईमानदार हो। क्या तुम मेरे कीमती हीरों की रखवाली कर सकती हो?”
चंचल के आंखों में चमक आ गई। उसने झूठ बोला, “जी हां दादा जी, मैं बहुत ईमानदार हूं। आप बेफिक्र रहिए।”
दादा जी ने एक थैला चंचल को दिया और कहा कि वे शाम को वापस आएंगे। चंचल ने झट से थैला खोला तो उसमें चमकदार कांच के टुकड़े थे, जो हीरों जैसे दिख रहे थे।
लालच में अंधी चंचल ने सारे ‘हीरे’ अपनी मांद में छुपा दिए और थैले में पत्थर भर दिए।
शाम को जब दादा जी आए तो चंचल ने कहा, “दादा जी, आपके हीरे बिल्कुल सुरक्षित हैं।” लेकिन जब दादा जी ने थैला खोला तो उसमें पत्थर थे।
“चंचल, मेरे हीरे कहां हैं?” दादा जी ने पूछा।
“मुझे नहीं पता दादा जी। शायद कोई चोर ले गया हो,” चंचल ने फिर झूठ बोला।
तभी सभी जानवर वहां आ गए। दादा जी ने कहा, “चलो सब मिलकर चंचल की मांद में देखते हैं।”
चंचल घबरा गई लेकिन वह मना नहीं कर सकी। जब सभी ने उसकी मांद देखी तो वहां राजू की गाजरें, मोती के दाने, चीकू के अखरोट, गोलू का शहद और वे कांच के टुकड़े सब मिले।
चंचल का झूठ पकड़ा गया। वह शर्म से पानी-पानी हो गई। सभी जानवरों ने अपना-अपना सामान वापस ले लिया।
दादा जी हाथी ने चंचल से कहा, “बेटी, झूठ के पांव नहीं होते। झूठ कितना भी बड़ा हो, एक दिन सच्चाई सामने आ ही जाती है। तुमने छोटे-छोटे झूठ बोले और आज तुम्हारी सारी चालाकी बेकार हो गई।”
चंचल को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने सभी से माफी मांगी और वादा किया कि वह अब कभी झूठ नहीं बोलेगी।
उस दिन के बाद चंचल ने सच्चाई का रास्ता अपनाया। धीरे-धीरे सभी जानवरों ने उसे माफ कर दिया और वह जंगल की एक अच्छी सदस्य बन गई।
नैतिक शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती है कि झूठ के पांव नहीं होते। झूठ बोलने से थोड़े समय के लिए फायदा हो सकता है, लेकिन अंत में सच्चाई ही जीतती है। ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है और झूठ बोलने वाला व्यक्ति अंत में अपना सम्मान खो देता है। हमें हमेशा सच बोलना चाहिए, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।












