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गुरु नानक का बगदाद यात्रा – पवित्र संदेश

बहुत समय पहले की बात है, जब गुरु नानक देव जी अपनी बगदाद यात्रा पर निकले थे। वे सत्य और प्रेम का संदेश फैलाने के लिए दूर-दूर तक जाते थे। उनके साथ उनके वफादार साथी मरदाना भी थे, जो हमेशा रबाब बजाकर गुरु जी के भजनों में साथ देते थे।

एक दिन गुरु नानक और मरदाना बगदाद शहर पहुंचे। यह शहर उस समय इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। शहर में प्रवेश करते ही लोगों ने इन अजनबियों को देखा। गुरु जी के चेहरे पर एक दिव्य तेज था और उनकी आंखों में अपार शांति थी।

शहर के मुख्य मस्जिद के पास गुरु नानक ने अपना डेरा डाला। जब नमाज का समय आया, तो गुरु नानक का बगदाद यात्रा का सबसे महत्वपूर्ण क्षण आया। वे मस्जिद के बाहर बैठकर ध्यान में लीन हो गए।

मस्जिद के इमाम और अन्य धर्मगुरुओं ने देखा कि यह व्यक्ति उनके धर्म का नहीं है, फिर भी वह यहां बैठा है। वे गुरु जी के पास आए और पूछा, “तुम कौन हो और यहां क्यों आए हो?”

गुरु नानक ने मुस्कराते हुए उत्तर दिया, “मैं एक यात्री हूं जो सत्य की खोज में निकला है। मैं यहां इसलिए आया हूं क्योंकि ईश्वर सभी जगह है – मंदिर में भी, मस्जिद में भी, और हर इंसान के दिल में भी।”

इमाम साहब ने कहा, “यदि तुम सच्चे हो, तो हमें कोई चमत्कार दिखाओ।”

गुरु नानक ने कहा, “सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि हम सभी एक ही परमात्मा की संतान हैं। हिंदू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई – सभी के दिल में वही एक प्रभु बसता है।”

फिर गुरु जी ने मरदाना से कहा कि वे रबाब बजाएं। जैसे ही मधुर संगीत की धुन बजी, गुरु नानक ने एक भजन गाया:

“एक ओंकार सतनाम, करता पुरख निरभउ निरवैर।
अकाल मूरत अजूनी सैभं गुर प्रसाद।”

इस बगदाद यात्रा के दौरान, गुरु नानक के भजन सुनकर वहां के लोगों के दिल छू गए। उनकी आवाज में इतनी शक्ति थी कि सभी धर्मों के लोग एक साथ बैठकर सुनने लगे।

एक बुजुर्ग मुस्लिम विद्वान ने पूछा, “आप कहते हैं कि सभी धर्म एक हैं, लेकिन हमारे रीति-रिवाज अलग हैं।”

गुरु नानक ने समझाया, “देखो, नदी चाहे पहाड़ से आए या मैदान से, अंत में सभी समुद्र में मिल जाती हैं। वैसे ही सभी धर्मों के रास्ते अलग हैं, लेकिन मंजिल एक ही है – परमात्मा तक पहुंचना।”

कई दिनों तक गुरु नानक का बगदाद यात्रा जारी रहा। वे रोज लोगों से मिलते, उनकी समस्याएं सुनते और उन्हें प्रेम और भाईचारे का संदेश देते। एक दिन एक गरीब व्यक्ति आया और बोला कि उसके पास खाने के लिए कुछ नहीं है।

गुरु जी ने अपना खाना उसे दे दिया और कहा, “भूखे को खाना देना, प्यासे को पानी देना – यही सच्ची इबादत है।”

बगदाद के लोग गुरु नानक के इस व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने देखा कि यह व्यक्ति केवल बातें नहीं करता, बल्कि अपने कर्मों से भी अपनी शिक्षा को दिखाता है।

जब गुरु नानक जाने का समय आया, तो पूरा शहर उन्हें विदा करने आया। इमाम साहब ने कहा, “आपने हमें सिखाया है कि धर्म का मतलब केवल रीति-रिवाज नहीं, बल्कि दिल की सफाई और दूसरों की सेवा है।”

गुरु नानक ने अंतिम संदेश दिया, “याद रखना, ईश्वर का नाम जपना, मेहनत से कमाना, और जरूरतमंदों की सहायता करना – यही जीवन का सच्चा उद्देश्य है।”

इस प्रकार गुरु नानक का बगदाद यात्रा समाप्त हुआ, लेकिन उनके संदेश वहां के लोगों के दिलों में हमेशा के लिए बस गए। आज भी बगदाद में एक स्थान है जहां गुरु नानक देव जी की याद में एक गुरुद्वारा बना हुआ है।

शिक्षा: गुरु नानक देव जी ने हमें सिखाया कि सभी धर्म और सभी लोग एक ही परमात्मा की संतान हैं। हमें किसी भी धर्म, जाति या देश के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। सच्चा धर्म वह है जो हमें प्रेम, करुणा और सेवा सिखाता है।

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