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गुरु नानक और दुनिया का पहला संदेश
बहुत समय पहले की बात है, जब धरती पर अंधकार और अज्ञानता का राज था। लोग आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे और सच्चे धर्म का पता नहीं था। उस समय तलवंडी नामक गांव में एक विशेष बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम था नानक।
छोटे नानक में बचपन से ही कुछ अलग बात थी। वे हमेशा ईश्वर के बारे में सोचते रहते और सभी धर्मों के लोगों से प्रेम करते थे। एक दिन जब नानक केवल सात वर्ष के थे, तो उनके पिता कालू जी ने उन्हें पंडित गोपाल दास के पास पढ़ने भेजा।
पंडित जी ने नानक को पहला अक्षर ‘ओम्’ सिखाया। लेकिन नन्हे नानक ने पूछा, “गुरु जी, यह ‘ओम्’ का क्या अर्थ है?”
पंडित जी ने समझाया कि यह ईश्वर का नाम है। तब नानक ने कहा, “यदि यह ईश्वर का नाम है, तो क्या यह केवल हिंदुओं के लिए है? मुसलमान भी तो ईश्वर को मानते हैं।”
पंडित जी चकित रह गए। इतने छोटे बच्चे के मुंह से ऐसी गहरी बात सुनकर वे समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं है।
समय बीतता गया और नानक बड़े होते गए। वे अक्सर नदी किनारे बैठकर ध्यान करते और ईश्वर से प्रार्थना करते। एक दिन जब वे बीस वर्ष के थे, तो वे बेई नदी में स्नान करने गए। वहां उन्हें एक अद्भुत अनुभव हुआ।
नदी में डुबकी लगाते समय नानक को लगा जैसे वे किसी दिव्य लोक में पहुंच गए हों। वहां उन्होंने एक तेजोमय प्रकाश देखा और एक मधुर आवाज सुनी:
“नानक! मैं तुम्हें धरती पर भेज रहा हूं। तुम्हें दुनिया का पहला संदेश देना है – ‘एक ओंकार सतनाम’। सभी मनुष्य मेरी संतान हैं, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान।”
जब नानक नदी से बाहर आए तो उनका चेहरा दिव्य प्रकाश से चमक रहा था। लोगों ने पूछा कि वे कहां थे, तो नानक ने कहा, “न कोई हिंदू है, न कोई मुसलमान। हम सब एक ही परमपिता की संतान हैं।”
यही था दुनिया का पहला संदेश जो गुरु नानक लेकर आए थे। उन्होंने बताया कि ईश्वर एक है और सभी धर्मों का मूल एक ही है।
गुरु नानक ने अपना यह संदेश फैलाने के लिए चार लंबी यात्राएं कीं। वे हर जगह जाकर लोगों को समझाते कि जाति-पाति, ऊंच-नीच सब भ्रम है। सच्चा धर्म तो प्रेम और सेवा में है।
एक बार वे मक्का गए। वहां उन्होंने अपने पैर काबा की तरफ करके सोए। जब लोगों ने आपत्ति की तो गुरु नानक ने कहा, “मेरे पैर उस दिशा में कर दो जहां खुदा नहीं है।” लोग समझ गए कि ईश्वर तो हर दिशा में है।
इसी तरह जगन्नाथ पुरी में जब पंडितों ने कहा कि वे गलत दिशा में नमाज पढ़ रहे हैं, तो गुरु नानक ने समझाया कि ईश्वर सभी दिशाओं में है, कोई दिशा गलत नहीं।
गुरु नानक का दुनिया का पहला संदेश था कि सभी मनुष्य बराबर हैं। उन्होंने लंगर की प्रथा शुरू की जहां सभी जाति के लोग एक साथ बैठकर खाना खाते थे।
एक दिन एक अमीर व्यापारी और एक गरीब किसान दोनों गुरु नानक के पास आए। अमीर व्यापारी ने कहा, “गुरु जी, मैं बहुत दान करता हूं, क्या मैं स्वर्ग जाऊंगा?”
गुरु नानक ने दोनों के हाथ देखे। अमीर के हाथ मुलायम थे जबकि किसान के हाथ मेहनत से कड़े हो गए थे। गुरु जी ने कहा, “ईश्वर के यहां मेहनत और सच्चाई की कीमत है, पैसे की नहीं।”
गुरु नानक ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने शिष्य भाई लहणा को अपना उत्तराधिकारी बनाया और उन्हें गुरु अंगद नाम दिया। उन्होंने कहा कि यह दुनिया का पहला संदेश आगे भी चलता रहना चाहिए।
जब गुरु नानक का समय आया, तो हिंदू और मुसलमान दोनों उनका अंतिम संस्कार अपने तरीके से करना चाहते थे। गुरु नानक ने मुस्कराते हुए कहा, “मेरे शरीर को फूलों से ढक दो। हिंदू एक तरफ फूल रखें, मुसलमान दूसरी तरफ। सुबह देखना कि किसके फूल ताजे हैं।”
अगली सुबह जब लोगों ने देखा तो वहां केवल ताजे फूल थे, गुरु नानक का शरीर गायब था। दोनों समुदाय ने समझा कि गुरु नानक का दुनिया का पहला संदेश यही था कि प्रेम और एकता में ही सच्चा धर्म है।
शिक्षा: गुरु नानक देव जी ने हमें सिखाया कि सभी मनुष्य एक समान हैं। जाति, धर्म, या रंग के आधार पर भेदभाव नहीं करना चाहिए। सच्चा धर्म प्रेम, सेवा और सच्चाई में है। यही था उनका दुनिया का पहला संदेश जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है।










