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चींटी और टिड्डा की अनोखी मित्रता
बहुत समय पहले एक हरे-भरे जंगल में चींटी रानी और टिड्डा राजा रहते थे। चींटी रानी बहुत मेहनती थी और हमेशा अपने काम में व्यस्त रहती थी। वहीं दूसरी ओर टिड्डा राजा को केवल गाना-बजाना और मस्ती करना पसंद था।
गर्मियों के दिनों में जब सूरज तेज़ चमक रहा था, चींटी रानी सुबह से शाम तक दाने इकट्ठा करने में लगी रहती थी। वह छोटे-छोटे दानों को अपनी पीठ पर लादकर अपने घर तक ले जाती और सर्दियों के लिए भंडार करती रहती।
एक दिन टिड्डा राजा ने चींटी को इतनी मेहनत करते देखा तो हंसते हुए बोला, “अरे चींटी रानी! इतनी धूप में क्यों परेशान हो रही हो? आओ मेरे साथ बैठकर गाना सुनो और आराम करो।”
चींटी रानी ने विनम्रता से उत्तर दिया, “टिड्डा राजा, अभी गर्मी का समय है। मुझे सर्दियों के लिए भोजन इकट्ठा करना है। तुम भी मेरी सलाह मानो और कुछ दाने जमा कर लो।”
टिड्डा राजा ने हंसकर कहा, “अभी तो बहुत समय है सर्दी आने में। मैं तो बस गाना-बजाना और नाचना जानता हूं। काम-धाम मेरे बस का नहीं।” यह कहकर वह फिर से अपनी मस्ती में लग गया।
चींटी रानी ने फिर समझाने की कोशिश की, “मित्र, समय का सदुपयोग करना चाहिए। आज मेहनत करोगे तो कल आराम से रह सकोगे।” लेकिन टिड्डा राजा ने उसकी बात को हवा में उड़ा दिया।
दिन बीतते गए और चींटी रानी लगातार अपना काम करती रही। उसने अनाज, बीज, और छोटे-छोटे फल इकट्ठे किए। उसका घर भोजन से भर गया। वहीं टिड्डा राजा दिन-रात गाते-बजाते रहा।
जल्द ही सर्दी का मौसम आ गया। बर्फ गिरने लगी और चारों ओर सफेद चादर बिछ गई। पेड़ों पर पत्ते नहीं रहे और खाने की चीज़ें मिलना मुश्किल हो गया।
चींटी रानी अपने गर्म घर में आराम से बैठी अपने जमा किए गए भोजन का आनंद ले रही थी। वहीं टिड्डा राजा ठंड से कांप रहा था और भूख से परेशान था। उसे कहीं भी खाना नहीं मिल रहा था।
आखिरकार टिड्डा राजा को चींटी रानी के पास जाना पड़ा। वह शर्मिंदगी से बोला, “चींटी रानी, मैं बहुत भूखा हूं। क्या तुम मुझे कुछ खाना दे सकती हो?”
चींटी रानी का दिल दया से भर गया। उसने कहा, “टिड्डा राजा, तुम मेरे मित्र हो। आओ, मेरे साथ खाना खाओ।” उसने टिड्डा को भरपेट खाना खिलाया।
खाना खाने के बाद टिड्डा राजा ने कहा, “चींटी रानी, मैं समझ गया हूं कि तुम कितनी बुद्धिमान हो। तुमने समय रहते मेहनत की और आज आराम से रह रही हो। मैंने केवल मस्ती की और आज मुसीबत में हूं।”
चींटी रानी ने मुस्कराते हुए कहा, “मित्र, अभी भी देर नहीं हुई। आगे से तुम भी मेहनत करना और समय का सदुपयोग करना।”
उस दिन के बाद से टिड्डा राजा ने अपनी आदत बदल दी। वह भी चींटी रानी की तरह मेहनत करने लगा और समय का सही उपयोग करने लगा।
शिक्षा: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि समय का सदुपयोग करना और मेहनत करना बहुत जरूरी है। जो व्यक्ति आज मेहनत करता है, वह कल आराम से रह सकता है। आलस्य और केवल मनोरंजन में समय बिताना हमें मुसीबत में डाल सकता है। चींटी और टिड्डा की यह कहानी हमें सिखाती है कि दूरदर्शिता और परिश्रम ही सफलता की कुंजी है।
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