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सृष्टि की उत्पत्ति – भगवान शिव की महान कथा

बहुत समय पहले, जब कुछ भी नहीं था, न पृथ्वी थी, न आकाश था, न सूर्य था और न ही चंद्रमा था। चारों ओर केवल अंधकार था। उस समय केवल भगवान शिव ही थे, जो अपनी गहरी समाधि में लीन थे।

एक दिन भगवान शिव की समाधि टूटी। उन्होंने देखा कि चारों ओर केवल शून्यता है। तब उनके मन में सृष्टि की उत्पत्ति का विचार आया। वे सोचने लगे कि इस संसार में जीवन होना चाहिए, प्रेम होना चाहिए, और खुशियां होनी चाहिए।

भगवान शिव ने अपनी दिव्य शक्ति से सबसे पहले माता पार्वती को प्रकट किया। माता पार्वती अत्यंत सुंदर और शक्तिशाली थीं। जब वे प्रकट हुईं, तो चारों ओर एक मधुर प्रकाश फैल गया।

“हे प्रिये!” भगवान शिव ने कहा, “मैं इस शून्य संसार में जीवन लाना चाहता हूं। क्या आप मेरी सहायता करेंगी?”

माता पार्वती मुस्कराईं और बोलीं, “हे नाथ! सृष्टि की उत्पत्ति में आपका साथ देना मेरा सौभाग्य है। आइए मिलकर इस संसार को सुंदर बनाते हैं।”

तब भगवान शिव ने अपना डमरू बजाया। डमरू की आवाज से पूरे ब्रह्मांड में कंपन हुआ। इस कंपन से सबसे पहले आकाश की उत्पत्ति हुई। आकाश नीला और विशाल था।

फिर भगवान शिव ने अपने त्रिशूल को हिलाया। त्रिशूल की शक्ति से वायु का जन्म हुआ। वायु ने पूरे आकाश में घूमना शुरू किया और एक मधुर संगीत बजने लगा।

माता पार्वती ने अपनी हथेलियों को रगड़ा और उनसे अग्नि प्रकट हुई। अग्नि की रोशनी से अंधकार दूर हो गया और चारों ओर उजाला फैल गया।

अब भगवान शिव और माता पार्वती ने मिलकर अपनी शक्ति से जल की सृष्टि की। जल शीतल और पवित्र था। यह जल आकाश में बादलों के रूप में तैरने लगा।

अंत में, सभी तत्वों को मिलाकर पृथ्वी का निर्माण हुआ। पृथ्वी हरी-भरी और सुंदर थी। इस प्रकार सृष्टि की उत्पत्ति के पांच मुख्य तत्व – आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी – तैयार हो गए।

लेकिन अभी भी कुछ कमी थी। भगवान शिव ने कहा, “हे पार्वती! इस सुंदर संसार में जीवन होना चाहिए।”

तब माता पार्वती ने अपनी मातृ शक्ति से पेड़-पौधों को जन्म दिया। हरे-भरे पेड़, रंग-बिरंगे फूल, और मीठे फल पृथ्वी पर उग आए। पृथ्वी एक सुंदर बगीचे की तरह दिखने लगी।

फिर भगवान शिव ने अपनी शक्ति से पशु-पक्षियों की रचना की। हाथी, शेर, हिरण, तोते, मोर, और अनेक प्रकार के जीव-जंतु पृथ्वी पर आ गए। वे सभी खुशी से नाचने और गाने लगे।

अब सृष्टि की उत्पत्ति लगभग पूरी हो चुकी थी, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण काम अभी बाकी था। भगवान शिव और माता पार्वती ने मिलकर मनुष्य की रचना की।

पहले मनुष्य को देखकर भगवान शिव बहुत खुश हुए। उन्होंने कहा, “यह मनुष्य मेरी सबसे अच्छी रचना है। इसमें सोचने-समझने की शक्ति है, प्रेम करने की क्षमता है, और अच्छे-बुरे में अंतर करने की बुद्धि है।”

माता पार्वती ने मनुष्य को आशीर्वाद दिया और कहा, “हे मानव! तुम इस सुंदर संसार के रक्षक हो। पेड़-पौधों की देखभाल करना, जीव-जंतुओं से प्रेम करना, और एक-दूसरे की सहायता करना।”

इस प्रकार सृष्टि की उत्पत्ति पूरी हुई। भगवान शिव ने देखा कि उनका संसार कितना सुंदर और जीवंत हो गया है। चारों ओर पेड़-पौधे लहलहा रहे थे, पशु-पक्षी खुशी से घूम रहे थे, और मनुष्य प्रेम से रह रहे थे।

भगवान शिव ने अपना डमरू फिर से बजाया, लेकिन इस बार यह खुशी का संगीत था। पूरा संसार इस संगीत पर नाचने लगा। फूल खिलने लगे, पक्षी गाने लगे, और हवा में मिठास घुल गई।

माता पार्वती ने कहा, “हे नाथ! आपने कितनी सुंदर सृष्टि की उत्पत्ति की है। यह संसार प्रेम, खुशी और शांति से भरा हुआ है।”

भगवान शिव मुस्कराए और बोले, “हे प्रिये! यह सृष्टि हम दोनों की मिली-जुली शक्ति से बनी है। जब तक संसार में प्रेम और सहयोग रहेगा, तब तक यह सृष्टि फलती-फूलती रहेगी।”

आज भी भगवान शिव और माता पार्वती इस संसार की देखभाल करते हैं। जब हम प्रकृति से प्रेम करते हैं, जीव-जंतुओं की रक्षा करते हैं, और एक-दूसरे की सहायता करते हैं, तो हम भगवान शिव की सृष्टि की उत्पत्ति की महान कथा को आगे बढ़ाते हैं।

इसीलिए हमें हमेशा याद रखना चाहिए कि यह संसार भगवान शिव का दिया हुआ उपहार है, और हमारा कर्तव्य है कि हम इसे सुंदर और स्वच्छ बनाए रखें।

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