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देवकी और वसुदेव का विवाह – कृष्ण की जन्म कथा

बहुत समय पहले की बात है, जब मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन का शासन था। उनका पुत्र कंस बहुत ही क्रूर और अत्याचारी था। उसी समय यदुवंश में एक महान योद्धा रहते थे जिनका नाम वसुदेव था। वे धर्मपरायण, न्यायप्रिय और सत्यवादी थे।

राजा देवक की पुत्री देवकी अत्यंत सुंदर और गुणवान कन्या थी। वह भगवान विष्णु की परम भक्त थी और सदैव धर्म के मार्ग पर चलती थी। जब देवकी और वसुदेव का विवाह तय हुआ, तो पूरी मथुरा नगरी में खुशी की लहर दौड़ गई।

विवाह का दिन आया। मंडप में पवित्र अग्नि जल रही थी। वेदमंत्रों की ध्वनि से पूरा वातावरण पावन हो गया था। देवकी ने लाल रंग की सुंदर साड़ी पहनी थी और वसुदेव पीले वस्त्रों में अत्यंत तेजस्वी लग रहे थे। दोनों ने सप्तपदी के सात फेरे लिए और एक-दूसरे के साथ जीवन भर निभाने का वचन दिया।

विवाह समारोह में कंस भी उपस्थित था। वह अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था। समारोह के बाद जब देवकी और वसुदेव विदाई के लिए तैयार हुए, तो कंस स्वयं रथ हांकने के लिए आगे आया।

“बहन, मैं तुम्हें तुम्हारे ससुराल तक छोड़ने जाऊंगा,” कंस ने प्रेम से कहा।

रथ चलने लगा। अचानक आकाशवाणी हुई – “हे कंस! जिस देवकी को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है, उसका आठवां पुत्र तेरा वध करेगा!”

यह सुनकर कंस का चेहरा क्रोध से लाल हो गया। उसने तुरंत रथ रोका और तलवार निकालकर देवकी को मारने के लिए उठाया।

“रुको कंस!” वसुदेव ने कहा। “यदि तुम्हें देवकी के पुत्र से भय है, तो मैं वचन देता हूं कि जो भी संतान हमारे यहां जन्म लेगी, उसे तुम्हारे पास ले आऊंगा।”

कंस ने वसुदेव की बात मान ली, लेकिन उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया। एक के बाद एक, देवकी के छह पुत्र जन्मे और कंस ने सभी को मार डाला।

सातवीं संतान के समय, भगवान विष्णु की माया से गर्भ देवकी के पेट से निकलकर वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के पेट में चला गया। इस प्रकार बलराम का जन्म गोकुल में हुआ।

जब आठवीं संतान का समय आया, तो पूरी प्रकृति में अद्भुत परिवर्तन हुए। आधी रात के समय जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, तो कारागार दिव्य प्रकाश से भर गया।

“हे वसुदेव!” नवजात शिशु ने कहा। “मैं भगवान विष्णु हूं। मुझे तुरंत गोकुल ले जाओ और यशोदा की नवजात कन्या को यहां ले आओ।”

अचानक कारागार के सभी ताले खुल गए, पहरेदार सो गए, और यमुना नदी का जल बांटकर रास्ता बना दिया। वसुदेव ने कृष्ण को टोकरी में रखा और गोकुल की ओर चल पड़े।

गोकुल पहुंचकर उन्होंने कृष्ण को यशोदा के पास रखा और उनकी नवजात कन्या को लेकर वापस कारागार आ गए। सुबह जब कंस को पता चला, तो वह आया और कन्या को मारने के लिए उठाया।

लेकिन वह कन्या देवी दुर्गा का रूप थी। वह कंस के हाथ से छूटकर आकाश में उड़ गई और बोली – “हे दुष्ट कंस! तेरा वध करने वाला गोकुल में जन्म ले चुका है।”

इस प्रकार देवकी और वसुदेव के विवाह से शुरू हुई यह कथा भगवान कृष्ण के जन्म तक पहुंची। देवकी और वसुदेव के धैर्य, त्याग और भगवान में अटूट विश्वास के कारण ही संसार को भगवान कृष्ण जैसे महान अवतार की प्राप्ति हुई।

शिक्षा: इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वालों की भगवान सदैव रक्षा करते हैं। कितनी भी कठिनाइयां आएं, यदि हमारा विश्वास दृढ़ है तो भगवान हमारी सहायता अवश्य करते हैं।

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