Summarize this Article with:

ब्राह्मण और नेवला की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गाँव में देवदत्त नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी का नाम यशोदा था। वे दोनों बहुत ही सरल और धर्मपरायण थे। कई वर्षों की प्रतीक्षा के बाद उनके घर एक सुंदर पुत्र का जन्म हुआ।

बच्चे के जन्म के कुछ दिन बाद, देवदत्त बाजार से लौट रहा था तो उसे रास्ते में एक छोटा सा नेवला मिला। वह बहुत छोटा था और उसकी माँ कहीं नजर नहीं आ रही थी। दयालु ब्राह्मण का दिल पिघल गया और वह उस नेवले को घर ले आया।

“यशोदा, देखो मैं क्या लाया हूँ,” देवदत्त ने अपनी पत्नी से कहा। “यह छोटा नेवला अकेला था, इसे हमारे बेटे का साथी बनाकर रखते हैं।”

यशोदा ने चिंता जताई, “लेकिन स्वामी, नेवला तो जंगली जानवर है। कहीं यह हमारे बच्चे को नुकसान न पहुँचाए।”

“चिंता मत करो,” देवदत्त ने समझाया। “मैं इसे प्रेम से पालूँगा। यह हमारे बेटे का रक्षक बनेगा।”

समय बीतता गया और ब्राह्मण और नेवला के बीच गहरा स्नेह बढ़ता गया। नेवला घर का सदस्य बन गया था। वह बच्चे के पास बैठकर उसकी रखवाली करता और किसी भी खतरे से उसे बचाता।

एक दिन यशोदा को पानी लेने के लिए कुएँ पर जाना पड़ा। उसने देवदत्त से कहा, “आप बाजार जा रहे हैं और मुझे भी कुएँ पर जाना है। बच्चा अकेला रह जाएगा।”

“कोई बात नहीं,” देवदत्त ने कहा। “नेवला यहाँ है, वह बच्चे की देखभाल करेगा।”

यशोदा अभी भी संदेह में थी, लेकिन मजबूरी में उसे जाना पड़ा। ब्राह्मण और नेवला दोनों अपने-अपने काम पर निकल गए, और नेवला बच्चे के पास रह गया।

कुछ देर बाद, एक विषैला साँप घर में घुस आया। वह रेंगता हुआ सोते हुए बच्चे की ओर बढ़ने लगा। नेवले ने तुरंत खतरा भाँप लिया। उसके रोंगटे खड़े हो गए और वह साँप के सामने आकर खड़ा हो गया।

एक भयानक लड़ाई हुई। नेवले ने अपनी जान की परवाह न करते हुए साँप से युद्ध किया। अंत में नेवले ने साँप को मार डाला, लेकिन इस लड़ाई में उसके मुँह और पंजों पर खून लग गया था।

जब यशोदा कुएँ से लौटी, तो उसने देखा कि नेवले के मुँह पर खून लगा है। उसे तुरंत लगा कि नेवले ने उसके बच्चे को मार दिया है। गुस्से में आकर उसने पास पड़े घड़े से नेवले को मार दिया।

बेचारा नेवला वहीं गिरकर मर गया। जब यशोदा ने घर के अंदर जाकर देखा तो उसका बच्चा सुरक्षित सो रहा था, और पास ही मरा हुआ साँप पड़ा था।

यशोदा को अपनी गलती का एहसास हुआ। वह रोने लगी। “हाय! मैंने कितना बड़ा अन्याय किया है। इस वफादार नेवले ने मेरे बच्चे की जान बचाई और मैंने इसे मार डाला।”

जब देवदत्त लौटा तो यशोदा ने रोते हुए सारी बात बताई। ब्राह्मण और नेवला की यह कहानी उन्हें जीवन भर पछतावे में डाल गई।

शिक्षा: यह कहानी हमें सिखाती है कि बिना सोचे-समझे और बिना पूरी बात जाने कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए। जल्दबाजी में लिए गए फैसले अक्सर गलत होते हैं और बाद में पछतावा होता है। हमें धैर्य रखकर सच्चाई जानने के बाद ही कोई कदम उठाना चाहिए। यहाँ एक और कहानी है जो हमें सिखाती है कि हमें हमेशा सचाई को जानने का प्रयास करना चाहिए।

Summarize this Article with:

About Me

Welcome to StoriesPub.com We started in 2019 with a simple idea to provide our readers with useful and interesting information. Our team is dedicated to curating a wide range of captivating content in different categories, including inspirational stories, funny tales, Parenting, Kids’ products, Educational AI content, Tech content, coloring books, how to draw, and more.