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बंदर और लकड़हारे की मित्रता
एक घने जंगल में चिंकू नाम का एक चतुर बंदर रहता था। वह बहुत ही मिलनसार और दयालु था। जंगल के पास ही एक छोटा सा गाँव था, जहाँ रामू नाम का एक गरीब लकड़हारा रहता था।
रामू प्रतिदिन जंगल में जाकर लकड़ी काटता और बाज़ार में बेचकर अपना गुज़ारा करता था। वह बहुत ही मेहनती और ईमानदार व्यक्ति था, लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी।
एक दिन जब रामू जंगल में लकड़ी काट रहा था, तो अचानक उसकी कुल्हाड़ी टूट गई। वह बहुत परेशान हो गया क्योंकि नई कुल्हाड़ी खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। वह एक पेड़ के नीचे बैठकर रोने लगा।
चिंकू बंदर ने रामू को रोते देखा तो उसके पास आया और पूछा, “क्या बात है भाई, तुम इतने उदास क्यों हो?”
रामू ने अपनी समस्या बताई। चिंकू को रामू पर दया आ गई। उसने कहा, “चिंता मत करो मित्र, मैं तुम्हारी मदद करूंगा।”
अगले दिन से चिंकू रामू की मदद करने लगा। वह पेड़ों पर चढ़कर सूखी टहनियाँ तोड़ता और रामू के लिए इकट्ठा करता। बंदर और लकड़हारे की यह अनोखी मित्रता देखकर जंगल के सभी जानवर हैरान थे।
कुछ दिनों बाद, चिंकू को एक पुराना खजाना मिला जो किसी राजा ने जंगल में छुपाया था। उसमें सोने के सिक्के और कीमती रत्न थे। चिंकू ने सोचा कि यह खजाना उसके मित्र रामू के काम आ सकता है।
चिंकू ने रामू को खजाने के बारे में बताया और कहा, “यह खजाना तुम्हारा है मित्र। इससे तुम अपनी सभी समस्याओं का समाधान कर सकते हो।”
रामू बहुत खुश हुआ, लेकिन उसने कहा, “चिंकू, यह खजाना तुमने पाया है, इसलिए यह तुम्हारा है। मैं इसे नहीं ले सकता।”
चिंकू ने जवाब दिया, “सच्चे मित्र अपनी खुशी बाँटते हैं। तुमने मुझे मित्रता का सच्चा अर्थ सिखाया है।”
आखिरकार दोनों ने मिलकर खजाने को बराबर बाँट लिया। रामू ने अपने हिस्से से एक छोटी सी दुकान खोली और चिंकू के लिए जंगल में एक सुंदर घर बनवाया।
बंदर और लकड़हारे की मित्रता की कहानी पूरे गाँव में फैल गई। लोग समझ गए कि सच्ची मित्रता जाति, धर्म या प्रजाति की सीमाओं को नहीं मानती।
वर्षों बाद भी चिंकू और रामू के बीच गहरी मित्रता बनी रही। वे एक-दूसरे की हर खुशी और गम में साथ खड़े रहते थे।
कहानी की सीख: सच्ची मित्रता में स्वार्थ नहीं होता। जो मित्र मुश्किल समय में साथ देता है, वही सच्चा मित्र होता है। दया, सहयोग और त्याग से मित्रता और भी मजबूत बनती है। सच्चे मित्रता की अन्य कहानियाँ पढ़ें।












