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अहंकारी मोर की कहानी – अहंकार का पतन

एक समय की बात है, एक घने जंगल में नीलकंठ नाम का एक बहुत ही सुंदर मोर रहता था। उसके पंख इंद्रधनुष की तरह रंग-बिरंगे थे और जब वह अपने पंख फैलाता था, तो सारे जंगल के जानवर उसकी सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो जाते थे।

नीलकंठ को अपनी सुंदरता पर बहुत अहंकार था। वह हमेशा अपने आप को जंगल का सबसे सुंदर और श्रेष्ठ पक्षी मानता था। दूसरे पक्षियों को वह हीन दृष्टि से देखता था और उनसे बात करना भी अपनी शान के खिलाफ समझता था।

एक दिन जंगल में एक बड़ी सभा का आयोजन हुआ। सभी पक्षी और जानवर इकट्ठे हुए। बुद्धिमान उल्लू ने घोषणा की, “आज हम सबसे उपयोगी पक्षी का चुनाव करेंगे।”

नीलकंठ तुरंत आगे आया और बोला, “यह तो बहुत आसान है! मैं सबसे सुंदर हूं, इसलिए मैं ही सबसे उपयोगी भी हूं।” उसका अहंकार साफ दिखाई दे रहा था।

तभी एक छोटी सी गौरैया आगे आई और बोली, “सुंदरता और उपयोगिता अलग चीजें हैं, नीलकंठ भाई।”

नीलकंठ ने घमंड से कहा, “तुम जैसी छोटी और साधारण चिड़िया मुझसे बात करने की हिम्मत कैसे कर सकती है?”

उल्लू ने कहा, “चलो, सभी अपनी-अपनी उपयोगिता बताएं।”

गौरैया ने कहा, “मैं किसानों के खेतों से हानिकारक कीड़े खाकर फसल बचाती हूं।”

कौआ बोला, “मैं जंगल की सफाई करता हूं और मरे हुए जानवरों को साफ करके बीमारी फैलने से रोकता हूं।”

कठफोड़वा ने कहा, “मैं पेड़ों के अंदर छुपे हानिकारक कीड़ों को निकालकर पेड़ों को स्वस्थ रखता हूं।”

जब नीलकंठ की बारी आई, तो वह सिर्फ अपने सुंदर पंख फैलाकर नाचा। सभी ने तालियां बजाईं, लेकिन उल्लू ने पूछा, “यह तो बहुत सुंदर है, लेकिन इससे जंगल को क्या फायदा होता है?”

नीलकंठ का मुंह खुला रह गया। उसे एहसास हुआ कि सुंदरता के अलावा उसके पास कोई विशेष गुण नहीं था जो दूसरों की मदद कर सके।

तभी अचानक जंगल में आग लग गई। सभी जानवर घबरा गए। छोटी गौरैया तुरंत उड़कर गई और नदी से अपनी चोंच में पानी भरकर लाई। कौआ और दूसरे पक्षी भी आग बुझाने में लग गए।

नीलकंठ भी मदद करना चाहता था, लेकिन उसे डर था कि कहीं उसके सुंदर पंख जल न जाएं। वह दूर खड़ा होकर देखता रहा।

जब आग बुझ गई, तो सभी जानवरों ने छोटी गौरैया और दूसरे सहायक पक्षियों की प्रशंसा की। नीलकंठ को बहुत शर्म आई।

उसने गौरैया के पास जाकर कहा, “मुझे माफ कर दो। मैंने अपने अहंकार में तुम्हें और दूसरों को छोटा समझा था। आज मुझे समझ आया कि सच्ची महानता सेवा में है, सुंदरता में नहीं।”

गौरैया ने मुस्कराकर कहा, “कोई बात नहीं, नीलकंठ भाई। आपकी सुंदरता भी एक वरदान है, बस इसका सदुपयोग करना सीखिए।”

उस दिन के बाद से नीलकंठ ने अपना अहंकार त्याग दिया। वह अपनी सुंदरता का उपयोग जंगल के बच्चों को खुश करने के लिए करने लगा। जब भी कोई बच्चा उदास होता, वह अपना सुंदर नृत्य करके उसे हंसाता।

धीरे-धीरे नीलकंठ सभी का प्रिय बन गया। उसने सीखा कि अहंकार का पतन निश्चित है और सच्ची खुशी विनम्रता और सेवा में ही मिलती है।

शिक्षा: अहंकार व्यक्ति को अंधा बना देता है और उसका पतन निश्चित है। सच्ची महानता विनम्रता और दूसरों की सेवा में है, न कि केवल बाहरी सुंदरता या गुणों के घमंड में। जो व्यक्ति अपने अहंकार को त्यागकर दूसरों की मदद करता है, वही सच्चा सम्मान पाता है।

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